भारतीय राजनीति में क्षेत्रीयवाद उत्तरांचल पृथक राज्य आन्दोलन के विशेष संदर्भ में | Bharatiy Rajneeti Men Kshetriyawad Uttaranchal Prithak Rajya Aandolan Ke Vishesh Sandarbh Men

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Bharatiy Rajneeti Men Kshetriyawad Uttaranchal Prithak Rajya Aandolan Ke Vishesh Sandarbh Men  by बृजेश कुमार गुप्त - Brijesh Kumar Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आवश्यकता इस बात की है कि एक राज्य पुनर्गठन आयोग की सहायता से आर्थिक विकास, प्रशासकीय सुविधा, स्थानीय संस्कृति और विशेष भौगोलिक परिस्थितियों को लेकर नये व छोटे राज्यों के गठन पर नये सिरे से विचार कर इस अध्याय को आने वाले कुछ समय के लिये बन्द कर दिया जाय। यदि ऐसा नहीं किया गया तो सम्भव है कि आज का पृथक राज्य आन्दोलन कल देश से अलग होने की मांग में तब्दील हो जाये।| पुनर्प ठन भारतीय संघवाद के विद्वानो ने विभिन्‍न सामाजिक तथा आर्थिक परिप्रेक्ष्य में क्षेत्रीयतावाद का अध्ययन किया है। इनमें ज्यादातर लोगों ने उन तत्वों को पहचानने का कार्य किया जो क्षेत्रीय भावनाओं की प्रवृत्तियों को तेज करती है। इकबाल नारायन ने क्षेत्रीय भावनाओं के विकास के परिप्रेक्ष्य में यह तथ्य स्थापित किया कि ये कुछ विशेष क्षेत्र अथवा हिस्सें में सामाजिक तथा आर्थिक अलगाव का परिणाम है। उनका कहना है कि ऐसे विचार क्षेत्रीय भावनायें) तब उत्पन्न होते हैं जब केन्द्रीय भू-तत्व अपने आपको संगठित रखने के लिये उन क्षेत्रों का तिरस्कार करते हैं । ए0के0वर्मा' ने अपने लेख में यह स्थापित किया है कि किसी भी नवीन राज्य के गठन मात्र से ही उस क्षेत्र की समस्याओं का समाधान नहीं होता यद्यपि उस नवीन राज्य में नूतन चेतना व आशा का संचार अवश्य होता है। एस0एस0भट्ट', आर जी नायक , हेमलता राय” आदि के महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का सम्बन्ध भारत में क्षेत्रीय विषमत्ताओ से हैं | एस0एम0सईद*, जे0आर0सिवाच'*, डब्ल्यू्एच0मौरिस जोन्स , पाऊल ब्राज आर , रजनी कोठारी , विपिन चन्द्र, मृदुला मुखर्जी & आदित्य मुखर्जी” के ग्रन्थों में अन्य मुद्दों के अलावा क्षेत्रवाद, जातिवाद, साम्प्रदायिक हिंसा, भूमिपुत्र सिद्धान्त, राष्ट्रीय एकीकरण की समस्या, क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का भारत की राजनीति पर प्रभाव, राज्यों का भाषा के आधार पर पुनर्गठन, भारत में राष्ट्रीय एकीकरण की समस्या इत्यादि पर समुचित विचार मिलते हैं। विपिनचन्द्र एवं अन्य ने स्वतन्त्रता प्राप्ति से लेकर बीसवीं सदी की समाप्ति तक भारत में राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक क्षेत्र में हुये विकास का विश्लेषण अत्यन्त प्रमाणिक ढंग से किया है। 3. . नारायन, इकबाल (1976), “' कल्वरल प्लूयारिज्प नेशनल इन्टीग्रेशन (एण्ड डेमोक्रेसी इन ड्राण्डिया ”, एशियन सर्वे, अक्टूबर | 4... वर्मा, ए०के० (1998), “छोटे राज्यों की बडी संवेदनाये ”, दैनिक जागरण, अगस्त 14 | 5... भट्ट, एल०एस० (1982), रीजनल इनइक्वल्टीज इन इण्डिया / (न इण्टर स्टेट एण्ड इन्टरा स्टेट एनालिसिस नई दिल्‍ली, एस०एस०आर०डी० | 6... नायक, आर०जी० (1981), रीजनल /डिस्पॉयरटीज इन इण्डिया नई दिल्‍ली, अगरिका पब्लिकेशन | 7. राय, हेमलता (1984), रीजनल डिसपाँयरटीज एण्ड डेवलपमेन्ट इन इण्डिया नई दिल्‍ली, आशीष पब्लिकेशन | 8... सईद, एस०्एम० (1998), भारतीय राजनीतिक व्यवस्था लखनऊ, सुलभ प्रकाशन | 9. सिवाच, जे०आर० (1990), डायनामिक्स आँफ इण्डियन यर्वनसेंट एण्ड पॉलिटिक्सट: एव (1992), भारत की राजनीतिक व्यवस्था चढ़ीगढ, हरियाणा साहित्य अकादमी | 10. जोन्स, डब्ल्यू०एच०मौरिस (1970), भारतीय शासन एवं राजनीति दिल्‍ली, सुरजीत पब्लिकेशन | 11. ब्राज, पाऊल आर० (1992), द पाँलिटिक्स ऑफ इण्डिया _सिन्स ड्ंडिपेंडेंस कैम्ब्रिज यूनिव० प्रेस । 12. कोठारी, रजनी (1990), भारत मे राजनीति नई दिल्‍ली, ओरियंट लाग्मैन लि० | 13. चन्द्र, विपिन, मृदुला मुखर्जी, आदित्य मुखर्जी (2002), आजादी के बाद का भारत 1947-2000, दिल्‍ली विश्वविद्यालय, हिस्ट्री माध्यम कार्यान्वय निदेशालय |




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