एकोत्तरशती | Ekottarashati
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
430
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रद
उत्पन्न होती है । अल्पवयस्क तरुण होते हुए भी रवीन्द्रनाथ ने इस
असुदरता का वर्णन किया हैं। 'नैवेद' तक आते-आते उनमे यह
दार्शनिक पुट गंभीर और गाढ हो उठा है, लेकिन बौद्धिकता और
भावावेग के समन्वय का सुन्दरतम रूप हम शायद “बलाका' में ही
पाते है। 'बलाका' की कुछ कविताएँ विचार और सवेदना के समन्वय
को प्रकाशन मे लाती हैं। और इस समन्वय के फलस्वरूप दर्शन-
शास्त्र के सिद्धान्त विदुद्ध गीति-काव्य का रूप ले लेते है ।
अपने जीवन के प्राय: अन्तिम दिनों तक रवीन्द्रनाथ नई अनु-
भूतियों और नई अभिव्यक्तियो के लिए सतत-प्रयासी रहे। साठवे
साल के बाद तो उनकी गीति-रचनाओं की जैसे बाढ़-सी आ गई थी ।
और वे रचनाएँ उनकी युवावस्था के प्रारम्भिक काल की उत्कृष्ट
रचनाओं तक से होड़ लगा सकती हें। इस काल की कविताओं में
गभीर सवेदना और भावोद्रेग का एक नया सुर है जो दुख से तपकर
विशुद्ध हो चुका हैं। इस दद्क में व्यक्तित्व के जो घनिष्ठ सुर और
निजत्व-भाव मिलते हैं, उसका स्थान अगले दशक में एक गहन एवं
गभीर मानव-धमं ने ले लिया है। पहले की उनकी रचनाओं मे भाव
और भाषा का जो प्राचुयें था, उसके स्थान पर अब भाव और भाषा
की एक अपूर्वे किफ़ायतशारी देखने को मिलती है। अन्त की उनकी
कुछ कविताओं में साम्थ्य॑ और आत्म-विद्वास का एक ऐसा भाव है
जिसका बुद्धि-तेज हमे चकित कर देता है। इसके अलावा जीवन
के चरम लक्ष्य के संबंध में उन्होंने कुछ प्रदन नये सिरे से भी उठाए
हूं और साथ ही बड़े श्ञान्त और स्निग्ध भाव से जीवन को उसकी
सभी न्यूनताओं और सभावनाओ के साथ स्वीकार किया है ।
है
(३)
रवीन्द्रनाथ ने एक हज़ार से अधिक कविताएँ और दो हजार
गीत लिखें हूं। वे मुश्किल से पन््द्रह वर्ष के रहे होंगे जब उनकी प्रथम
पुस्तक प्रकाश में आई और अन्तिम कविता उनकी मृत्यु के ठीक
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