विचार और विवेचन | Vichar Aur Vivechan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
158
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भारतीय श्रौर पाश्यात्य काब्य-शास्त्र
पक चिशप घरातता से नीचे उतर कर सारण नित्य-प्रलि के उीचल
का साधारण च्यावहारिकि देती मो चिन्रण करना, उसकी दप्टि में,
साहित्य की महत्ता को खश्डित करते हुए उसे सस्ता ग्ोर घटिया सना
देना है । विपय और शैली का सहज शोर अभियाोर्य संवन्ध ह--चिघय
आर साय की गुरुता से चाणो सी अनिवायता सुरू-गंभीर हो जाती है ।
है फिणा नि हवोणुंण्ठ वि. छु्छा काले 8. &8ा101-
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... इसके तिपरीत यूरीपाइडीज बाचीन काब्यादशों के शरति थिद्वोह
करता हुआ दिघयर तथा भाषा दोनों की ब्यावहारिकता झर ताजूग
का पक्ष सता हू--
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्र्थात में अपने नाटकों में उन बातों का चिन्नण करता हूं जिनका
सीधा संबन्घ निस्थ-प्रति के जीवन योर क.र्यनव्यवहार से है ।
इसी तरह
(2 | | 46 व. किटिक्ध पएह6 धिए0. का 8छ80.
11 !
ाह, हुसें कम-से-कम सनुग्यों की भाषा तो बोदने दो ।
उपरयुग्क उदादरणों में, श्राप देखिये, काव्य-शास्त्र का एफ शस्यन्त
मौलिंक प्रश्न उठाया गया हे । काव्य के विषय आर शेली साधारण
होते हैं षत्रा श्रसाधारण भर द्िविष्ट ? वास्तव में यहाँ साहित्य के
प्रदीप श्र आधुनिक सूदयों का संघर्ष श्तस्थन्ठ स्पष्ट शब्दों में व्यक्त
किया गया है, झ्ोर साटककार ने एसकाईसस के मुख से अत्यन्त सशक्त
घाणी में जो श्रपना निशंय दिया हूं चदद झाज भी उतना ही सहुर्च-
पूणा श्यौर विवादास्पद बना हुआ है। उसके दो भाग किये जा
सकते हैं।---
(१) काव्य घस्तु आर काव्य सात्रा का अनिवार्य संबन्ध है |
(२) काव्य की चस्तु शरीर काव्य, की भाषा अनिवापंत्तः श्रसा-
धारण ही होती है ।
एरिस्टोफ़नीजू की झालोचना का महत्व केवल बैयत्तिक ही नहीं.
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