हिन्दी उपन्यास के चरित्र में अजबीपन की भावना | Hindi Upanyash Ke Charitra Men Ajabipan Ki Bhavana

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Hindi Upanyash Ke Charitra Men Ajabipan Ki Bhavana  by विद्याशंकर राय -Vidyashankar Ray

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१०) ततिक प्रमाव दी ष्यफे ठँे नियष मैं वह कश्ता 7 का पं पशान नै उन्मतति की* है, छपारी मॉस्तिष्क मी उसी सलपात मैं ू ही गये हैं 1 यो का' विचार था दि सम्यता का बदता' दबाव मनुष्य कौ जपने महज नैर्पार्गिक स्वभाव मै दूए छटाफा उपके सामाजिक पम्य वाचरण लए कृत्तिक र्वासरविक व्यवष्ार मैं दरार उत्पन्न करता है । इस ताह सम्य प्रमाण का तंत्र मनुष्य की ज्मिता की सडित वार बिकृत कर मनुष्य की कस दुनिया मैं अजनवी बना देता है । ४7 विचारधारा का छगढा घरण फ्रँयिद (९८४६-४८६३७) की न छाइजैशन रण्ड इृट्स रडिपकाटैन्ट्स ,. द फुयुचर जॉोवि सम उल्युजन पचनाजलीँ मैं छ्यवत यान कैॉन्द्रत मनौवेशञािक विधा मैं छिसता है पजिपक खलुपार पम्यता, प्रामाणिक परम्पालीँ छीए नैतिकता के प्रचलित प्रातिमा मकश थी दुवाव मै तथा रतिन्माव छिड़ी ) के दमन के फजस्वर्प 'व्या पा ९ प५ विेल्मान काट, लिए, हाई के नाम गाय है जिन्होंने सम्पन्म सीरए पुप्गत कात्ख को एप के सोन्दयसास्त्रीय विधाए « स्तैफान मौराबूप्की , मय, २६७३, पु फ्र् |




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