वार्षिक रिपोर्ट १९५४-५५ | Varsic Report 1954-55

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Varsic Report 1954-55 by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( ११ ) मामलों में ज्येष्ठता से तात्पयं उस क्रम से हैं जिस क्रम में स्थानापप्न पदोझति के लिये अभ्यथियों का चुनाव किया. जाता है, न कि उस क्रम से जिस क्रम में उनके नाम नीचे वाली सेवाओं में होते है। दासन ने इसे स्वीकार कर लिया । ७--डिप्टी सुपरिस्टेन्डेन्ट पुलिस के पदों के लिये पदोन्नति द्वारा चुनाव करने के सम्बन्ध में दासन ने उन्हीं अधिकारियों की चरित्रावलियों को भेजा था, जो मनोनीत करने वालें प्राधि- कारियों द्वारा विचारार्थ संस्तुत किये गये थे। कमीशन ने शासन से अनुरोध किया कि वह विभागोय चुनाव समिति द्वारा मुख्य सूची में रक्‍खे हुये कनिष्ठतम अधिकारी से ज्येष्ठ सभी पात्र अधिकारियों की चरित्रावलियां भेजे ताकि कमीशन अपना सन्तोष कर ले कि बिना पर्याप्त आऔचित्य के कोई भी ज्येष्ठ पात्र अधिकारी छोड़ा नहीं गया है, जेसा कि दासनादेश सं० २१६६/ र-ख--प४-१९४८, दिनांकित २२ अक्टूबर, १९५३ में अपेक्षित हू। दासन नें मांगी हुई चरित्रावलियों को नहीं भेजा और बतलाया कि उत्तर प्रदेश पुलिस सेवा के नियमों, १९४२ के अधीन केवल वे ही पुलिस इन्सपेक्टर डिप्टी सुपरिन्टेन्डेन्ट पुलिस के पदों पर पदोन्नति के लिये फात्र थे, जो डिप्टी इन्सपेक्टर जनरलों तथा इन्सपेक्टर जनरल द्वारा मनोनीत किये गये थे और ऐसे सब अधिकारियों की चरित्रावलियां पहले ही उसके पास भेजी जा चुकी हैं। दासन नें यह भी कहा कि २२ अक्टूबर, १९५३ के शासनादेश, जिसका निर्देश कमीशन ने किया है, केवल कार्यकारी आदेश ( «४६००प५िए० 0एतल४ ) थे और वे किसी. वेधानिकी नियम (50कए०एएछ शप16) के उपबन्धों का उल्लंघन नहीं कर सकते । शासन के विचार से कमीशन अथवा दासत को भी यह अधिकार नहीं है कि बे मनोनीत करने वाले प्राधि- कारी से यह पूछें कि उसने असमुक अधिकारी को क्यों सनोनीत नहीं किया या अमुक अधिकारी को क्यों मवोनीत किया ?. कमीदान ने शासन को बतलाया कि नियुक्ति (ख) विभाग झासनादेश सं० ०-३०५/२-ख-१९५३, दिनांकित ३० जनवरी, १९५३, जिसके अनुसार विभागीय चुनाव समिति द्वारा संस्तुत अभ्यथियों की उपयुक्तता के विषय में परासद देने के अतिरिक्त कमीशन पर इस बात का भी उत्तरदायित्व आ गया कि वह यह देखें कि किसी ज्येष्ठ अधिकारी का अवक्रमण बिना पर्याप्त औचित्य के नहीं हुआ था, पदोन्नति के सभी मामलों में लागू होते थे, और इस कारण सभी सेवा नियम उस हद तक अपने आप संशोधित हो गये है। यह तक कि किसी सामान्य आदेश (0७0७९ 0सत6) से सेवा नियमों (867ए7ं06 कप68 दा संशोधन नहीं किया जा सकता, सुशिकिल से सही है । पदोन्नति की पुरानी प्रक्रिया सभी सेना -नियमों में निर्धारित थी और जब पदोन्नति के सभी मामलों में उस प्रक्रिया का संशोधन कर दिया गया, तो उस हद तक सभी सेवा-तियम अपने आप संशोधित समझे जाने चाहिये । मनोनीत करने वाले प्राधिकारी के स्वयं विवेक के सम्बन्ध में कमीशन ने कहा कि जब उसे झासन के सुख्य सचिव तथा इन्सपेक्टर जनरल पुलिस से बनी हुई समिति द्वारा किये गये चुनाव का पुनरावलोकन करना पड़ता हैं तो कोई कारण नहीं है कि कमीशन यह जांच करके अपना सन्तोष न कर ले कि डिप्टी इन्सपक्टर जनरल पुलिस महोदयों ने अपने विवेक का उचित प्रयोग किया है। कमीशन ने यह भी कहा कि यदि शासन का यह विचार हो कि पुलिस विभाग के अधिकारियों से सम्बन्धित कुछ सूचनाओं को कमीदान से छिपा रखना हू तो कमीदान ऐसे सीमित अधिकारों के अधीन रह कर अपना परामर्श देने की अपेक्षा यह चाहेगा कि उसके पर्यवलोकन से उन सामलों को विकाल दिया जाय । ८--पदोन्नति के कई सामलों सें कमीदान से देखा कि जो व्यक्ति दासन के अन्य विभागों से प्रतिनियुक्ति पर (०7 त०पक्घं00) थे उत पर विभागीय चुनाव समिति ने निम्त से उच्चतर सेवाओं या पदों पर पदोन्नति के लिये विचार नहीं किया था ।. कमीडत ने कहा कि उस आधार पर किसी अधिकारी के अधिकारों की उपेक्षा करना अनुचित था क्योंकि सामान्यतः प्रतिनियुक्ति की स्वीकृति लोक-हित में दी जाती है। _ उसने सुझाव दिया कि ऐसे व्यक्तियों के सासलों पर पदोन्नति के समय दिचार करना चाहिये। किन्तु स्थायी पदों पर उनके पूर्भाधिकार (1:60) अनिध्चित काल तक न चलते रहने देना चाहिये ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now