गुप्तकालीन मुद्राएँ | Guptakalin Mudraen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला अध्याय ड साम्राज्य की महान विपत्ति टाली थी ।. कुछ विद्वान इस मत से सहमत नही हैं, वे रामगुप्त की ऐतिह्ासिकता पर आपत्ति करते है , क्योंकि उसकी स्थिति प्रशस्तियों तथा मुद्दाओं से पुष्ट नहीं की जाती । एक मत के शझ्नुसार रामगुप्त का नाम गुप्त बशावली में इस कारण उल्लिखित नहीं किया गया कि उसके वशज आगे राज्य नहीं कर सकें अथवा उसका शासन गुप्तचंश के लिए कालिमा का घब्बा था। हाल ही सें मालवा से चार-पॉच ताम्बे के सिक्के मिले हैं, जिन पर रामगुप्त का नाम स्पष्ट रूप से उत्कीर्ण है । आगे चलकर उसके सोने के सिंक भी प्राप्त हो सकते हैं। यह असम्भव नहीं कि वह ससुदर का ज्येष्ठ पुत्र था ।. यह कहना आव- श्यक हैं कि रामगुप्त की स्थिति काच के समान श्रभी भी अरनिश्चित-सी हैं । द्वितीय चन्द्रगुप्त प्राय ३७४ ई० में सिंहासन पर बैठा । उसकी लम्बी शासन-अवधि ४१२ ई० तक विस्तृत थो ।. उसे शासन के द्वारम्भ मे झनेक कठिनाइयों का सामना करना पडा । उसने बगाले के विद्रोह को दबाया श्ौर विद्रोह शात हो जाने पर कुषाश-सेना सिन्ध नदी के किनारे तक भगाई गई । पश्चिमी पंजाब गुप्त-साम्राज्य में सम्मिलित न हो पाया, परन्तु कुषाण तथा शक राजा गुर्तों के सामत के रूप में शासन करते रहे । ई० सन्‌ ३६० के पश्चात्‌ द्वितीय चन्द्रगुप्त ने काठियावाड़,गुजरात तथा मालवा के शक चत्रियों के विरुद्ध प्रबल आक्रमण किया, जिसमें वह सफल हुआ । इस घटना का विशेष महत्त्व है कि जो शक तीन सौ वर्षो से उस भू-भाग में शासन करते थे, वे पुर्ण रूप से सदा के लिए मिटा दिये गये । भारतीय राजनीति से उनका नाम तक लोप हो गया । मालवा, गुजरात तथा कांठियावाड गुप्त साम्राज्य में मिला लिये गये, जिससे सामुद्रिक व्यापार का एक नया मार्ग खुल गया । द्वितीय चन्द्रयुप्त की पुत्री प्रभावती गुप्ता का विवाह वाकाटक राजा द्वितीय स्दसेन के साथ हुआ था जो वैवाहिक जीवन के प्रारम्भिक वर्षो में ही विधवा हो गई। उसके दो नाबालिंग पुत्र थे, इस कारण चन्द्रयुप अपनी पुत्री की शासन-प्रबंध में सहायता करता रहा । उसने झनेक झनुभवी कर्मचारियों को भेजकर पुत्री की सहायता की थी । चन्द्गुप्त के शासन-काल में राजकीय झुद्राओों में अधिक उन्नति हुई । सोने के अतिरिक्त चाँदी तथा ताम्बे को भी मुद्रा्मों के लिए प्रयोग किया गया । चॉदी को मुद्राएँ क्षत्रप सिक्कों के 'नुकरण पर चलाई गईं, जो उससे मिलती-जुलती हैं। सम्भवत इस घातु की सुद्राएँ पश्चिमी विजित प्रदेशों के लिए थीं जो चाँदी-सिंक्कों के प्रचलन में झ्रभ्यस्त थे । द्वितीय चन्द्रयुप्त के पश्चात्‌ उसका पुत्र प्रथम कुमारयुप्त राज्य का स्वामी बना । इस नये राजा की सबसे पहली तिथि ६६ गु० स० हैं तथा चन्द्रगुप्त की अतिम तिथि &३ गु० स० । अतएव इन तीन चर्षो की अवधि में कुछ घिद्वान गोविन्दगुप्त का स्थान निश्चित करते हैं , जिसने राज्य छीन कर इस समय शासन किया हो। इस मत की पुष्टि के लिए ठोस प्रमाण नहीं मिलते हैं तथा कोई लेख भी इसे प्रमाणित नहीं करता ।. यदि उन तीन वर्षो में कुछ काल तक गोविन्द्गुप्त ने शासन किया भी दो तो उसकी कोई मुद्रा उपलब्ध नहीं हुई हैं ।




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