मानसिक दक्षता | Mansik Dakshata

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Mansik Dakshata by राजेंद्र बिहारीलाल - Rajendra Biharilal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अन है पे मानसिक दक्षताका महत्त्व ष उपयोगी बना छेना ही सफलता है और साघारण सामग्रीको अनमोल बना देना महान्‌ सफलता है । दिमाग केवल पैदा ही नही होते चरन्‌ बनाये भी जा सकते हैं । मसिष्कके भारहीसे उसकी उपयोगिता नहीं ज्ञात होती बल्कि उसकी शाक्तियोंकी व्यवस्था और उद्योग- झीढतासे | बढुत-से मनुष्य जिन्हें वंशपरम्परासे थोड़ा ही मानसिक बल मिछा है आत्म-विधास और अध्यवसायद्वारा दुनियाके बड़े-बड़े विचारकोमेंसे हो गये हैं । मनोतरिज्ञानाचायोनि औसत मचुष्यकी मानसिक कार्यक्षमताका गहरा अध्ययन किया है और एक वात जिसने उनके ध्यानको ब्रड़ी प्रबछतासे आकृष्ट किया है वह यह हैं कि आजकल्के. जमानेमें भी जब कि सुख और सफलता दोनोंहीके ठिये निपुणताकी बड़ी आवश्यकता है असंख्य नर-नारी अयोग्यता और मूर्वताका ही जीवन व्यतीत करके. संतुष्ट रह. जाते है । हर रोज एक औसत मनुष्य अपने कारोबारमे कई घंटे ढगाता है और कई घंटे खेल-कूद दिख- बहाव अथवा अपने विशेष मनोरक्षनकें कार्य या पुस्तकावलोक्रम या किसी प्रश्षके हढ करनेमें उगाता हैं। पर बह इन सभी कार्मोको जितना चाहिये और जितना सहजहीम हो सकता है उससे एक चौथाईसे लेकर तीन चौथाईतक कम योग्यतासे करता है । बह अपने मनको निपुणताकी ऐसी नीची श्रेणीमें छोड़ देता है और ऐसे गठत तरीकंसे प्रयोग करता हैं कि उसके ठिये आसान काम कठिन वन जाते हैं और कठिन क्राम असम्भब्र । विंना किसी अच्छे कारणके वह कितनी ही प्रकारकी योग्यताएँ सीखनेमें असमर्थ रहता




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