भारत में 1980 से राजकोषीय घाटे तथा उसके नीतिगत नीतिगत निहितार्थों का एक अध्ययन | Bharat Men 1980 Se Rajkosiy Ghate Tatha Usake Nitigat Nihitarthon Ka Ek Adhyayan

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Bharat Men 1980 Se Rajkosiy Ghate Tatha Usake Nitigat Nihitarthon Ka Ek Adhyayan  by अनूप कुमार सिंह - Anoop Kumar Singh

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अनूप कुमार सिंह का जन्म बलिया जिला के पहाड़पुर नामक गाँव में हुआ था । आप गाँव के ही प्राथमिक विद्यालय से कक्षा 5 तक की पढाई पूरी की ।स्नातक की पढ़ाई इलाहाबाद विश्वविद्यालय से की ।मास्टर डिग्री काशी विद्यापीठ वाराणसी से प्राप्त की ।बीएड का प्रशिक्षण आगरा विश्वविद्यालय से प्राप्त की ।
वर्तमान समय में आप बरेली के लाल बहादुर शास्त्री इ कालेज रिछा बरेली में अध्यापक के पद पर कार्यरत हैं ।आप के अध्यापन कार्य से छात्रों में आप के प्रति विशेष लगाव है ।

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पर जोखिम उत्पन्न हुआ हैं। इन योजनाओं में से अधिकतर जैसे बैक ऋण और भूमि राजस्व को छोड देना, समानता की दृष्टि से न केवल अनैच्छिक बल्कि अधोगामी भी है। वर्ष 1990-91 में कीमत स्तर की स्थिति भी समान रूप से आर्थिक सकट की सूचना दे रही थी। वित्तीय वर्ष 1990-91 से लगातार थोक मूल्य सूचकाक 10 प्रतिशत से अधिक वार्षिक वृद्धि दर पर बना हुआ था और बिल्कुल यही प्रवृत्ति वित्तीय वर्ष 1991-92 के शुरूआती चार महीनों में भी रही। प्राथमिक वस्तुओं विशेषरूप से. खाद्याननों की कीमतों में 1990-91 में 15 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि देखी गयी। और इसमें 1990-91 के शीतकाल तक भी कोई कमी नहीं आयी। सबसे अधिक व्यवधान वाली स्थिति यह रही कि भारतीय अर्थव्यवस्था में क्रमिक फसलों के सदर्भ में मानसून अनुकूल होने के बावजूद कृषि उत्पादों की कीमतों में वृद्धि दिखायी पडी। अर्थव्यवस्था में आर्थिक सकट के अन्य लक्षण भी थे। 80 के दशक से ही निजी क्षेत्र में गैर कृषि रोजगार के वृद्धि दर में गिरावट उत्पन्न हुई एव अर्थव्यवस्था में सम्पूर्ण रूप से रोजगार की वृद्धि दर जो कि 70 के दशक में 21 प्रतिशत थी




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