वैदिक कथाओं का आलोचनात्मक अध्ययन | Vadik Kathaon Ka Aalochanatmak Adhyayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
265
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about चन्द्र भूषण मिश्र - Chandra Bhushan Mishr
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रकाश की आँख मिचौली को निहारा : वैदिक कवि ने उसमे स्वर्ग से
सीमाहरण की उद्भावना की * । उसने सूर्य को इन्द्र और चन्द्रमसू को गोतम कहा।
सदैव साथ -साथ रहने के कारण रात्रि उसकी सहचरी और पत्नी है । दिन में
लीन हो जाने के कारण वह अहल्या है। वह ऋषि की कल्पना मे इन्द्र-रूप सूर्य के
पास अभिसरण करती है, उसकी गोद में छिप जाती है । अदित्य उसका जार हैं |
इस प्रकार सारी की सारी प्राकृतिक शक्तियों से संवद्ध-संघटनाओं नक्षत्रीय
गति-विधियों सृष्टि की उत्पत्ति इल सबसे संबद्ध प्रश्नों का उत्तर उसने अपने
जाने - पहचाने प्रतिदिन के जीवन में अनुभूत घटनाओं तथा सामाजिक संबधों के
अनुरूप कथाओं की कल्पना कर देने का प्रयत्न किया । इसके लिए उसने इनके
सघटनाओं से संबद्ध उन शक्तियों का दैवीकरण के साथ -साथ मानवीयकरण भी
किया । उसे अवयवों से संयुक्त किया और कथाओं को जन्म दिया । सच तो यह
है कि जैसे ही किसी प्राकृतिक - घटना से संबद्ध -शक्ति को मूर्त रूप दिया गया
होगा | इस प्रकार पुरातन कथाओं का मूल तद््युगीन -मानव -मन है, जिसने
प्राकृतिक - शक्तियों को मानव के समान शरीरी मान लिया गया। इन्हीं कथाओं
का बहुविधि विस्तार ब्राह्मणों में प्राप्त होता है । इन ब्राह्मण- ग्रन्थों में कर्मकाण्ड की
संगति के लिये 'देवासुर - स्पर्धा' इन्द्र -वृत्र-युद्ध' 'देव -यजन' तथा “सृष्टि-
रचना' संबंधी कथाओं को अनेक प्रकार से कल्पित और विनियुक्त किया गया है |
इसके अतिरिक्त संहिता तथा ब्राम्हणों दोनों में ही लौकिक- व्यक्तियों से संबद्ध
घटनाएँ भी कथा रूप में उपनिबद्ध हुई है ।
कालान्तर में उन कथाओं में पर्याप्त विकास हुआ । कभी -कभी तो कथा
मूल घटनां से इतनीं दूर चली गयी है कि मूल तथा उसकी विकसित कथा दोनों
* ऋण्सं० १० ,/१०
२ अहल्यायै जार: शत०्घा० ३४४१८ | तंत्रवार्तिक - १३६२ ।
* सिखक ७ ,/पू-६
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