व्यक्ति और राज | Vyakti Aur Raaj

Vyakti Aur Raaj by श्री सम्पूर्णानन्द - Shree Sampurnanada

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ व्यक्ति 'र राज लिक स्रीमाके भीतर उनका निवासस्थान है; निरथक है। परन्तु दम ऐसे लोगोंको असाधारण मानते हैं, इनकी संख्या कभी भी 'म्रघिक नहीं हुई । सामान्यतः: तो जो मनुष्य किसी विवशता के कारण दूसरे मनुष्योंसे अलग पढ़ जाता हे वह फिर समाजका ज्ऑ बनना चाहता हे; जबतक उसकी यद्द इच्छा पूरी नहीं द्ोती तबतक व्याकुल रहता है। बह जानता है कि वह जिस समाजमें जा मिलेगा बह किसी न किसी राजका 'छावयव होंगा, अत: द्प्रत्यक्तरुपसे बद्द किसी न किसी राजका “नागरिक, किसी न किसी राजसे सम्बद्ध व्यक्ति, बनना चाइता है। जो पागल हे. जिसवा मरितष्क काम नहीं काता, या जिसकी बुद्धि पमभी उद्बुद्ध नहीं हुई, उसको छोड़कर सभी, यहाँतक कि चोर न्ोर खूनी भी, झपनेको किसी राजसे बेंँधा पाते हैं और इस बाँघनेवाली डोरको काटनेका प्रयत्न नहीं करते पायें जाते । जं! लोग कानून तोड़कर जेलॉंमें बन्द होते हैं । वह कुछ बन्घनों को भले ही नापरन्द करने हों, किसी तात्कालिक 'झावशें 'ाकर कोई उददण्डता कर बेठ हों, पर वह भी यदद नहीं चाहते कि जिन स्वस्वोंको बह अपना समझते हैं उनका अपइरण हो । व्द्द क्या 'चाइते हैं इसको ठीक-ठीक न कह सकते हों पर उनकी भी हार्दिक इच्छा यहीं रदददी है कि चद्द सुधघरे हुए राजके 'अंग हो कर रद सकें । अत: जो लोग देखनमें अपवाद ज्ञान पढ़ते हैं बह भी चस्तुतः इस व्यापक नियमके बाहर नहीं हैं कि प्रत्येक व्यक्ति छपनी इच्छासे राजसे सम्बद्ध है। यह बात बबंर श्योर




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