एक महान् नैतिक चुनौती | Ek Mahaan Naitik Chunautii

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Ek Mahaan Naitik Chunautii by लुई फ़िशर - Lui Phisher

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डन्कक॑ के बाद दे दूर तक ग्रसर रख नेवाला भ्रन्तर्राष्ट्रीय उद्देश्य, श्ररथात्‌ शान्ति, दृष्टि से श्रोकल हो जाता है । इसके भ्रलावा, जब कभी किसी संकट के बादल फट जाते हें तो कूटनीतिज्ञ श्रौर बहुत-से साधारण लोग भी हषे मनाने लगते हें । समस्या हल हुई या नहीं, इसकी उन्हें इतनी चिन्ता नहीं होती जितनी इस बात की, कि चलो इस समय तो तनातनी कम हुई । एक दिन एकाएक ये ही उलझी हुई समस्याएं श्राकर खड़ी हो जाती हैं । पहले श्र दूपरे महासमर के बीच जो समय बीता उसमें धुरी राष्ट्र-समूह से बाहर के किसी भी देव ने लगकर या विशेष रूप से युद्ध रोकने की चेष्टा नहीं की । उलटे राजमीतिज्ञों ने कहा--''हिटलर युद्ध के लिए उतोरू हे, इस समय हमे उसकी बाते मान लेनी चाहिएँ; बाद में जब वह जड़ जमाकर बेठ जायगा तो रूस-विरोधी दाक्ति के रूप मे उसकी मित्रता हमारे लिए बहुमूल्य सिद्ध होगी ।” उन्होंने यह भी कहा--'इटली का हब्श पर हमला करना एक जुमं हे, फिर भी यदि हम मुसोलिनी को श्रधिक न भींचें तो सम्भव हे कि वह हिटलर के विरुद्ध हमारा साथ दे ।” इसके झ्रलावा भी उन्होंने. कहा--“'यदि स्पेन वामपक्षी रहा तो उससे सब जगह वामपक्ष को ही प्रोत्साहन मिलेगा । फ़ैन्को मसोलिनी या हिटलर का पिट्ठ है तो होने दो, हम उसे रुपये उधार देकर, उसके साथ दया दिखाकर श्रौर उसके मामलों में हस्तक्षेप न करने की नीति बरतकर उसे खरीद सकते हे ।” इस तरह की बातों से तात्कालिक लाभ तो श्रवद्य हुम्रा किन्तु ये सिद्धान्त की बाते नहीं थीं । इस प्रकार लल्लो-चप्पो करने से हिटलर, हिरोहितो श्रौर मुसोलिनी को ब्रिता रक्त बहाये ही विजयी बनने में ' सहायता मिली, जिसके फलस्वरूप यद्ध ग्रघिक दिनों तक चला श्रौर उसमें खून की नदियाँ भी खूब बहीं । राज- नीति केवल युद्ध की सृष्टि ही नहीं कर सकती बल्कि उसे दीघंकालीन भी बना सकती है । साथ ही साथ वह विजय को निरथेक भी कर सकती हे । युद्ध से पहले जो राजनीतिक हिचकिचाहट थी वह उसके आरम्भ होजाने पर भी चलती रही । तुष्टीकरण की नीति संक्रामक सिद्ध हुई। जहाँ एक सर- कार ने उसे छोड़ा वहीं दूसरी ने श्रपना लिया । फ्रांस और ब्रिटेन को छोड़- कर ध्री-राष्ट्र-समूह के बाहर ऐसा कोई दूसरा देश नहीं था जिसने श्रपने पर प्राक्रमण होने से पहले यद्ध की घोषणा की हो । फ़ास ने ३ सितम्बर, १९६३९ को प््‌ब्बजे सन्ध्या समय यद्ध घोषित किया; वह भी इसलिए कि उसी दिन सवेरे ११ बजें इंग्लैण्ड ऐसा कर चुका था । सदा की तरह फ्रांस को. अकेले रहने से डर लगता था । ग्रेट ब्रिटेन ही एक ऐसा देश था जहाँ जनता में इस




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