अनेकार्थरत्नमञ्जूषायाम | Anekartha Ratna Manjusa
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
182
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अरह्ावना: श्ह
ग्रन्थनाम ब्रन्थमानमू रचनासंवत्
दान-शील-तप-मावनासंवाद ( मू, ) १६६२
रूपकमालाओ्वचूर्णिः ४००. १६६३
चारप्रत्येकबुद्रास ( गू, ) ६द्घु
सातुमासिकव्यारूपानमू शा का
कालिकाचायेकथा १६६६
आवकाराधनाविधिः १६६७
शीलछत्रीसी ( गू, ) १६६५९,
सम्तोषछत्रीसी ( गू ) मी
प्रियमेठकरास ( यू. ) १६७२ ३०
सामाचारीशतकम 19
“विशेषजशतकम् कम के
५ छींबडी भाण्डागार सत्कायां प्रययां प्रशसिरियम--
“'सोकसह बासठि (9६१२ ) सम रे 'सांगा' नगर (0) मनझारि ।
पशटप्रम सुपसाउ ऊइ रे एड भण्णड अधिकारे रे ॥ ३ ॥
सोहम सांपि परंपरा रे 'खरतर' गच्छ कुछचंद । युगप्रधान जगि परगढ़ा रे शीजिन यन्त्र सूरिंदो रे ॥ ७ ॥
तासु सीस अति दीपतो रे विनयवंत जसबंत । आचारिज चढती कला रे शीजिनर्सिहसूरि मतों रे ॥ ८ ॥
प्रथम श(शि)ष्य श्रीपूजनो रे सकलचन्द तसु सीस । समय सुन्दर वाचक भणिरे संप सदासुं जयौस रे ॥९॥
दाम शीछ तप भावनों रे सरस रचिड संवाद । भणतां गुणतां मावयु रे रिद्धि सरद्धि सुप्रसादों रे ॥ १०॥'”
२ इयं समशोधि श्रीसमयखुन्द्रगणिप्रगुरुभ्रीजिनचन्द्रसूरिचिष्यश्रीरखनिघानगणिमिः ।
इ छुनीजीभाण्डायारसत्कसप्पत्रास्मिकायाश्वातुमासि कब्याउयानप्रस्था: प्राम्ते--
''भ्रीसमयसुस्द्रो प!ध्यायविर चितचतुर्मासिकब्याख्यान समाप्तम् ।””
४ वाराणसीस्थय लि श्नीवारूचन्द्रभाण्डागारसरककालकसूरिकथा प्रतिप्राम्ते उछेखो यथा-««
*“प्रीमद्धिक्रम संबति रसदुद्यक्ञार( ५६६६ )सझूख्यके सइसि ।
श्ी'वीरमपुर'नगरे श्रीराउठलेज्सीराज्ये ॥ १ ॥
बृदत्खरतरे गर्छे, युगप्रधागसूरयः । जिनचन्द्रा जिनलिदाश, विजयन्ते गणाधिपाः ॥ २ #
तब्किष्यः सकलचन्द्रः, शिष्य: समयसुन्द्रः । कथां कालिकसूरीणां, चक्रे बाकावबोधिकामु ॥ ३ ॥'”
७ 'मेडता'नगरे रचितमिद्म् ।
६ श्रीविजयघर्मकदमी शान भाण्डागारसस्कप्रतिप्रास्ते ज्यमुछ्ेखः---
'झीमत्'खरतर'गच्छे शीमशिनसिंदसूरिगुरुराज्ये । सान्नाज्य कुषाणे युगप्रधानाक्यविदद्धरे ॥ १ ॥
घिक्रमसंवति छोचनमुनिदुर्शयकुसुदुबान्घव( १६७९ )परमिते ।
आीपाश्वेजस्मदिवसे ( पैषकृक्यदशस्यों ) पुरे भी 'मेढता'वगरे ॥ ९ ॥
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