भाषा विज्ञान तत्त्व | Bhasha Vigyan Tattv

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Bhasha Vigyan Tattv by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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|. _| क्या ध्वनि, क्या पद, क्य वाक्य सभी में परिवतंन ' होता रहदददा है । भापा की देशकाज के झ्नुसार जिस झनेक रूपता! का हमें अनुभव दोदा है, वह भाषा की परिवतनशीक्ता की साची दे रद्दी है । आदित्यवार विकसिद दोकर “'इतवार” हो गया है, और 'एकादश' ग्यारह, 'द्ादश” से 'बारद, एवं ्यज्षायु से 'अझाल' तथा लौटी झादि शब्दों का विकास हुआ है भाप के इस परिवतन के कारण मापा ही में उपस्थित रहते हैं। उसे इम परस्परा से सखते हैं , इस कारण यह निश्चित दी है कि ठीक बेसी ही; जेसी वद्द किसी न्य के पास दोती है, इम उसे ग्रहण नहीं कर पाते । वैज्ञानिक रीति से देखा जाय वो मानना पढ़ा कि कोई दो व्यक्ति विलकुल एक सरद की सापा नहीं बोल सकते । उच्चारण के साथ ही थे सम्बन्धी मिन्नता भी स्वाभाविक है। क्योंकि थे अनचुभवजन्य है, घर श्चुभब व्यक्तिगत मिन्नता पर निर्भर रहता है । इनीसे आापा में परिषते्र होना अनिवाय इ गजाता है। इस परिवतंत्र का उदाइरण है चालक के 'लिपाना” के दख़न पर 'पापाना” । लव बालक ऐसा घोलता 5, उसके मां-बाप तुरन्त उसे टोकते हैं और बताते हैं-- ' पा सकना ? वीलो । इसी प्रकार चालक षा 'लदद' 'घली' छौर 'छात” शब्दों कों वढ़े भाई वहन वतलाते हैं; न लड़! “घड़ी! व 'सात' बोला कारों सैया । इस प्रफ़ग्र जाप में कुछ ष 'शॉ में परिवतन दोठा रहता है, और कुछ छा शों में नहीं । यह दिकास गति 'ौर स्थिति के विचित्र संसमिश्रणु के रूप छी रर्‌इ होता रहता है । अ।पा-विज्ञानियों ने इस विकास पे मूल कारण सी टूटने का प्रयल्र फिया है । वे मूल कारण पटल दो प्रकारके होते हैःसाक्षात और 'असाच्तात । पुनः ये 'वार प्र कारके हैं। ,




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