हमारे गाँवों का सुधार और संगठन | Hamare Gaon Ka Sudhar Aur Sangthan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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2 बेकारी का इछाज १. बेकारी की भयानकता नहि कक्चित्‌ क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्‌ । कार्यते हचवक्ष: कम. सर्व: प्रकृतिजेगुंण: ॥। नन्गीता द-५ एक क्षण भी कोई विना कोई कम किये नहीं रह सकता । हरेक को प्रकृति के गुणों से वाव्य होकर कोई-न-कोई कमें करना ही पड़ता है । जब प्रकृति ऐसी जवदैस्त है कि कोई बिना कम किये रही नहीं सकता, तो जिन लोगों का रोजगार छीन लिया जायगा वे अपने वेकारी के समय में भला या बुरा क्ोई-न-कोई काम ज़रूर करेंगे । भारतवर्ष की किसानों भौर मजदूरों की इतनी भारी आवादी में जहाँ शिक्षा के युभीते विल- कुछ नहीं हैं, यह आशा करना व्यर्थ की कल्पना हैं कि बेकार जनता अपने वेकारी के समय को अच्छे कामों में लगायेंगी । साधारण जन- समुदाय अपने वचे हुए समय को संसार के किसी भाग में कहीं भी अच्छे कामों में नहीं लगाता । यह विलकुल स्वाभाविक वात है । भारत की जनता इसका अपवाद नहीं हो सकती । जव उसके पास कोई काम नहीं है और वह भूखों मर रही है तव उससे कोई वात अकरनी नहीं है । इस बेकारी का हमारे देव पर भयानक परिणाम हुआ है । संसार के अन्य सम्य देशों में जब कभी वेकारों की गिनती हजारों और लाखों में पहुँचती है तो उसी समय देठा-भर में उधल-पुथल मच जाती है, सरकारें वदछ




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