खादी टेक्नोलॉजी | Khadi Technology

Khadi Technology by आर. पी. मिश्रा - R. P. Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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खादी का वैचारिक विकास 9. समाप्त प्राय:हो गया । कपड़ा मिलों की स्थापना के लगभग 50 चर्प में ही भारतीय वस् उद्योग एवं वख्र कला अत्तीत की चीज हो गयी । स्थिति इस तरह वदल गयी कि 19वीं सदी के दूसरे दशक तक कताई-वुनाई साधन प्राय: समाप्त हो गये । यद्यपि चुनाई का कार्य फुटकर रूप से थोड़ा बहुत्त होता रहा । पर यह बुनाई मिल के धागों से की जाने लगी । इसकी म॑ भीरता का अन्दाज इसी से लगाया जा सकता है कि गांधीजी को 1921 के आस-पास कताई के लिए चरखे की खोज ब्रिटिश भारत के दूर दराज के गांवों में करनी पड़ी । स्पष्ट है तव कताई के साधनों का प्राय: लोप हो चुका था । लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि उनका अस्तित्व विल्कुल समाप्त हो चुका था । सर्वे क्षण के दौरान इस वात की पुष्टि हुई कि 20 वीं सदी के प्रारम्भ तक राजस्थान के गांवों से मोटी सूती कताई भी कहीं कहीं होती थी और रेजा-रेजी के ठत्पादन का क्रम 20वीं सदी के प्रारम्भ तक चलता रहा यद्यपि जैसाकि ऊपर कहा गया है मिल का सूत इनके बुनने में बड़े पैमाने पर काम में लिया जाता था । अकसर मिल का सूत ताने में और हाथ का सूत वाने में प्रयोग किया जाता था । खादी की खोज गांधीजी ने खादी में भारत की आत्मा को देखा । गांधीजी की राय में खादी मात्र वख्र नहीं था वह तो स्वतन्त्र भारत की मई अर्थ रचना का प्रतीक था 1 गांधीजी 1915 में अफ्रीका से भारत आये थे । उसके वाद ही उन्होंने करथे और चरखे के वारे में सोचा । हिन्द स्व॒राज्य में गांधीजी ने कताई के यन्त्र को कर्घा के नाम से संदोधित किया है । 1916 में अहमदाबाद के पास कोचरव में आश्रम की स्थापना की और वहीं वुनने के लिए करदा विठायां लेकिन उस समय बुनाई के काम में मिल का सूत ही काम में लिया गया । गां धीजी सूत के परावलम्वन से मुक्त होना चाहते थे | अतःठन्होंने कताई के लिए उपयुक्त चरखे की खोज चालू रखी । उन दिनों सुदूर गांवों में सरखे चलते थे लेकिन अहमदाबाद के आस-पास उनका प्रचलन नहीं था । गांधीजी ने श्रीमती गंगा वहन को चरखे की खोज का कार्य सौंपा । गांधीजी ने लिखा है: गुजरात में खूब घूमने वे बाद गायकवाड़ी राज्य के विजापुर गांव में गंगा वहन को चरखा मिल गया । यहां बहुत ये कुट्टम्बों के पास चरखे थे,जिन्होंने उसे टांड पर चढ़ाकर रख छोड़ा था । यदि कोई उनका कता सूत लेता और उन्हें पूनियां वरावर दे देता,तो वे कातने के लिए तैयार थे । उक्त कथधम से स्पष्ट है कि (क) गांधीजी को तब चरखे या करवे की जानकारी नहीं थी । (ख) चरखें की खोज के लिए उन्हें काफी प्रयल करना पड़ा 1(ग) यह वात स्पष्ट होती है कि उस समय (1916-19158)-गांवों में चरखे थे और लोग कताई करना जानते थे । (व) श्रारम्भ में कताई के लिए मिल की पूनी तथा वुनाई के लिए मिल के घागे का उपयोग किया गया । गांधीजी ने खादी को राष्ट्रीय आन्दोलन से जोड़ दिया 1 खादी को स्वदेशी का प्रतीक माना गया और मिल वस्र को विदेशी शासन एवं शोषण का ! इसीलिए मिल वल्र का चहिष्कार आन्दोलन चड़े पैमाने पर चला । कांग्रेस ने खादी को स्वीकार किया और 1922 में प्रस्ताव किया




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