साहित्य का इतिहास | Sahitya Ka Itihas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
280
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(झा) रंगमंचीय नाटक-साहित्य
भारतेन्दु ने जानकी-मंगल (सन् १८६९) को दिन्दी साया का
सर्व प्रथम खेला जाने वाला नाटक माना है और इसका उल्लेख उन्दोंने
अपने “नाटक” में किया है । दुर्भाग्य से यदद नाटक उपलब्ध नहीं ।
'्राप्य रंगमंचीय नाटकों से सब से पुरातन नाटक इन्द्र-प्रमा ( र० का०
श्८्श३) है । इस के लेखक सैयद झागा इसन “झसासत' ( सन्
१८१६--८ ईं० ) थे जो प्रसिद्ध उदं कवि 'नासिख' के शिष्य और
लखनऊ के नवाव बाजिद् अली शादद ( सब १८४७-८७ ईं० ) के
दुरवारी कबि थे । अपने छाश्रयदाता के कहने पर ही यह गीति-नाव्य
रू 00605 ) 'अझसानव' ने लिखा था 1
यद्यपि इन्द्र-तया शुद्ध दि'द़ी भापा का नाटक न होकर प्रघानतः
उदू का गीति-नाट्य है परन्तु उस की भाषा को आजकल की कठिन
खदूं भाषा नह कद्दा जा सकता; वह वास्तव में हिन्दी उदूं मिश्रित भाषा
है और उसकी गणुना इस इष्टि से हिन्दी रंगमंचीय नाटकों में भी
दो सकती है । इन्द्र-तया के समाप्त होते दी लखनऊ के कैसर-वाग
में रंगमंच तैयार किया गया । कददते हैं इसी ठाट वाट से साजे रंगमंच
'पर इन्दर-समा का असिनय हुआ और स्वयं नवाव वाजिद अली शाह
से उससें राजा इन्द्र का 'छमिनय किया 1?
इन्द्र-समा गीति-नाट्य होने के कारण अपना विशेष स्वान रखती
है । टेकनीक की दृष्टि से सादित्यिक नाटकों की श्रणाली का 'अजुकरण
इसमें भी पाया जाता दे । साहित्यिक नाटकों मं जो स्थान मगलाचरण
और अस्वावना का है. उसकी पूर्ति के लिए इसमें भी निर्देशक
( :७०७०० ) की छावश्यकता दोती है । भेद इतना ही हैं कि संस्कृत
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