साहित्य का इतिहास | Sahitya Ka Itihas

Sahitya Ka Itihas by सोमनाथ - Somnath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(झा) रंगमंचीय नाटक-साहित्य भारतेन्दु ने जानकी-मंगल (सन्‌ १८६९) को दिन्दी साया का सर्व प्रथम खेला जाने वाला नाटक माना है और इसका उल्लेख उन्दोंने अपने “नाटक” में किया है । दुर्भाग्य से यदद नाटक उपलब्ध नहीं । '्राप्य रंगमंचीय नाटकों से सब से पुरातन नाटक इन्द्र-प्रमा ( र० का० श्८्श३) है । इस के लेखक सैयद झागा इसन “झसासत' ( सन्‌ १८१६--८ ईं० ) थे जो प्रसिद्ध उदं कवि 'नासिख' के शिष्य और लखनऊ के नवाव बाजिद्‌ अली शादद ( सब १८४७-८७ ईं० ) के दुरवारी कबि थे । अपने छाश्रयदाता के कहने पर ही यह गीति-नाव्य रू 00605 ) 'अझसानव' ने लिखा था 1 यद्यपि इन्द्र-तया शुद्ध दि'द़ी भापा का नाटक न होकर प्रघानतः उदू का गीति-नाट्य है परन्तु उस की भाषा को आजकल की कठिन खदूं भाषा नह कद्दा जा सकता; वह वास्तव में हिन्दी उदूं मिश्रित भाषा है और उसकी गणुना इस इष्टि से हिन्दी रंगमंचीय नाटकों में भी दो सकती है । इन्द्र-तया के समाप्त होते दी लखनऊ के कैसर-वाग में रंगमंच तैयार किया गया । कददते हैं इसी ठाट वाट से साजे रंगमंच 'पर इन्दर-समा का असिनय हुआ और स्वयं नवाव वाजिद अली शाह से उससें राजा इन्द्र का 'छमिनय किया 1? इन्द्र-समा गीति-नाट्य होने के कारण अपना विशेष स्वान रखती है । टेकनीक की दृष्टि से सादित्यिक नाटकों की श्रणाली का 'अजुकरण इसमें भी पाया जाता दे । साहित्यिक नाटकों मं जो स्थान मगलाचरण और अस्वावना का है. उसकी पूर्ति के लिए इसमें भी निर्देशक ( :७०७०० ) की छावश्यकता दोती है । भेद इतना ही हैं कि संस्कृत १... &. सांडणिए एप एंकवप 1धिहाएए6 0 सिश्चा उदधण सडछाा४ 2. 351.




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