घनश्याम महाभारत | Ghanashyam Mahabharat

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Ghanashyam Mahabharat by घनश्याम नारायण जी भाटिया - Ghanashyam Narayan Ji Bhatiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नरहबर कोई राहे पुरख़तर में । अंधेरा होगा हर जानिब नज़र में ॥ बुरा है वक़्त. वह जिसका कि डर है । : सख्माँ ये है कि जो पेशे नज़र है ॥ 6 दमे श्राखिर रवाँ आँखों में होगा । कसी दिन ये समाँ आँखों. में होगा ॥ बदलती हाँ मुददब्बत च्सी निगाहे । हुर इक जानिब हों दहसरत की निगाहें ॥| दमे रुखुसत हो घरवालों ने घेरा । खड़ा हो सब लदा असबाब मेरा ॥ हुजूमे अहिल मातम हो खिंराने । त्रजीजों -अक़रबा खेशो यगाने ॥ ं हर इक की हो निगाहे हसरते श्ालूद । खड़ी हो बेकसी बाली पै मौजूद ॥ अज्ञब मायूस हो नाकाम डइुनिया । तपाँ हाँ हम शसीरे. दाम दुनिया ॥ न । किसी को एक दम की इन्तिज्ञारी । प्‌ किसी के दिल में हो फिक्रे सचारी ॥ मेरे हर काम बाहम बेट रहे होँ। . . उठाने वाले भाई छंट रहे हों ॥। गरज सामाने रुखुसत जब हो तैयार । उसे तामील हो इुक्मे क़ज़ा की । . ल्‍ उसे हो ढील अर्जे मुद्दा की ॥ बह बिफरी हो कि आगे घर के निकल : ...... ये मचली हो कि द्शंन करके निकलूं. ॥ पड़े जाँ और अजल में ओके तकरार ॥' से सलवरटयककट सलवनननट लिए अरकटिससलटेस सब फिदरय दर परसंपयरपपरमरयम नजर दे वन कि सर न पद न नए कपकपयय नया,




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