पुरातत्त्व - निबन्धावली | Puratattv Nibandhavali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
85 MB
कुल पष्ठ :
314
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इंटे और गहराई 5
शिकता कुछ भी नहीं रह सकती । इस तरह समसामयिक सामग्री पीछे रचित
प्र लिखित ग्रत्थों से बहुत हीं अधिक प्रामारिक है । हाँ, जसा कि, मैंने ऊपर
कहा है, वहाँ हमें उनकी समसामयिकता को सिद्ध करना होगा । समसामयिकता
सिद्ध करने के लिये निम्न बाते सबसे श्रधिक प्रामाणिक हैं--(१) स्वयं लेख में
दिया संवत् श्रौर नाम, (२) लिपि का झ्राकार, (३) गहराई, (४) प्राप्त वस्तु
के आस-पास मिली इंटें श्रौर अन्य वस्तुएँ ।
पहली बात तो स्वेभान्य है ही; लेकिन ऐसा संवत्-काल लिखने का रवाज
गुप्तों के ही समय से मिलता है । भ्रान्घ्नों, कृषाणों, मौर्यों के लेखों में तो राजा
के अ्रभिषेक का संवत् दिया रहता है; उनका काल-निणंय कठिन है। बहुत से
लेखों में तो काल भी नहीं रहता । ऐसी श्रवस्था में, भ्रक्षरों को देखकर,
उनसे काल-निचय किया जाता है । यद्यपि इसमें दो-एक शताब्दियों के झ्रस्तर
होने की सभ्भावना है; किन्तु जो सामग्री सबसे प्रचुर परिमाण में मिलती है
और मनुष्य-जीवन के सभी अ्रज्ञलों पर प्रकाश डालती है, वह भक्षराख्धित भी
नहीं होती । इसी सामग्री की समसामयिकता को सिद्ध करने के लिंये तीसरे
पर चौथे प्रमाणों की झ्रावइ्य कता होती है ।
. ऐतिहासिक सामग्रियों में प्रत्यक्षदर्शी लेख का, श्रपनी जबान खोलकर
सन्-संवत् के साथ घटनाओं का वर्णन करना, ऐतिहासिक प्रत्यक्ष है । किन्तु
जब वह अ्रडद्ध या भ्राकार से भ्रपने काल मात्र को बतलाता है, तब भी वह अपने
साथ के बतंन, दीवार, जेवर, सूरति आदि के बारे में इतनी गवाही दे ही जाता
है कि, इतने समय तक हम सब साथ रहे हैं । उस समय की सभ्यता झादि
सम्बन्धी बातें तो श्रब श्रापको उनकी सूक भाषा से मालूम करनी होंगी । हाँ;
यहाँ यह भी हो सकता है कि, भिन्न काल में बनी वस्तुएँ श्रौर लेख पीछे वहाँ
इकट्ठे कर दिये गये हो; किन्तु बहू तो तभी हो सकता है, जब्र कि संग्रहालय
(म्युजियम) की तरह यहाँ भी इकट्ठा करने का कोई मतलब हो । लेखों के साथ
कुछ अर चीजें भी सभी जगह मिला करती हैं; श्रौर, यह भी देखा गया है कि,
काल के शभ्रनुसार इनके श्राकार-प्रकार में भेद होता रहता है। इसीलिंये इन्हें भी
काल-निर्णय में प्रमाण माना जाता है ।
देहात में भी लोग कहा करते हैं कि, “धरती माता प्रतिवर्ष जौ-भर मोटी होती
जाती हैं !” यह बात सत्य है; लेकिन इतने संशोधन के साथ--“सभी जगह नहीं,
शऔर मोटाई का ऐसा नियत मात भी नहीं । भारत में मोहनजोदड़ो वह स्थान
है, जहाँ श्राज से चार-पाँच हजार वर्ष की पुरानी वस्तुएँ मिली. हैं । लेकिन वहाँ
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