स्वतन्त्रोत्तर काल में भारतीय जनसंख्या की प्रवृत्ति समस्या एवं समाधान का विश्लेषणात्मक अध्ययन | Swatantrottar Kal Men Bharatiy Janasankhya Ki Pravritti Samasaya Evm Samadhan Ka Vishleshnatmak Adhyayan
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
313 MB
कुल पष्ठ :
319
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अध्याय - प्रथम
जनसंख्या वृद्धि का इतिहास
विद्वानों के अनुसार आज से लगभग 20-30 लाख वर्ष पूर्व मानव का इस
घरती पर प्रादुर्भाव हुआ था | प्रारम्भ से सन् 1830 तक विश्व की कुल जनसंख्या केवल
एक अरब थी, किन्तु अगले 100 वर्षों में ही अर्थात् सन् 1930 तक जनसंख्या दो गुनी
हो गई । तात्पर्य यह है कि जितनी जनसंख्या वृद्धि लाखों वर्षों में हुई उतनी इधर सास
100 वर्षो में ही हो गई | जनसंख्या मश्धि की यह दर और तेज हुई और अगली एक अरब
की वृद्धि केवल 30 वर्षों में ही हो गई | इस प्रकार सन् 1960 तक 3 अरब नर-नारी इस
धरती पर हो गये और फिर अगले 15 वर्षों में ही अर्थात् सन् 1975 तक जनसंख्या
बढ़कर 4 अरब हो गई | विश्व जनसंख्या में पुनः 1 अरब की वृद्धि होने में केवल 12 वर्ष
ही लगे | 11 जुलाई 1987 को विश्व के 5 अरब वें शिशु का जन्म युगोस्लाविया में हुआ |
12 अक्टूबर 1999 को सम्पूर्ण विश्व की जनसंख्या बढ़कर 6 अरब हो गई | अनुमान है
कि विश्व की जनसंख्या सन् 2010 तक 7 अरब सन् 2022 तक 8 अरब तथा 2050 तक
9 अरब हो जायेगी |
..... जनसंख्या सम्बन्धी सूचनाओं के संकलन की परम्परा प्राचीनकाल से ही
किसी न किसी रूप में विद्यमान रही है। भारत, मिश्र, बेवीलोन तथा चीन के प्राचीन
इतिहास में राज्य के जनसंख्या सम्बन्धी उल्लेख मिलते है। उस समय जनसंख्या
सम्बन्धी ऑआँकड़ों को एकत्र करने में राज्य की रूचि सम्भवत: प्रशासन सैनिक शक्ति एवं
सैन्य व्यवस्था, भूमि व्यवस्था एवं लगान आदि की दृष्टि से रही होगी। भारत में
महाभारत, कौटिल्य का अर्थशास्त्र और आइने-अकबरी में जनसंख्या सम्बन्धी उल्लेख
मिलते है। इस तरह जनसंख्या सम्बन्धी विचार समय-समय पर व्यक्त किये जाते रहे
है तथा इसकी गणना भी की जाती रही है। अतः आँकड़े केवल किसी साध्य के लिये
साधन की भूमिका निभाते थे।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...