पुराणों में उपलब्ध आयुर्वेदीय सामग्रियाँ | Puranon Men Upalabdh Aayurvediy Samagriyan

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Puranon Men Upalabdh Aayurvediy Samagriyan by श्रीकृष्ण कुमार सिंह - Srikrishna Kumar Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इन समग्र व्युत्पत्तियों की मीमांसा करने से स्पष्ट है कि “पुराण' का व्य विषय प्राचीन काल से सम्बद्ध था। प्राचीन ग्रन्थों में पुराण का सम्बन्ध इतिहास से इतना घनिष्ठ है कि दोनों सम्मिलित रूप से 'इतिहास-पुराण' नाम से अनेक स्थानों पर उल्लिखित किए गये हैं। “इंतिहास' के अत्यन्त प्राचीन ग्रन्थों में उल्लिखित होने पर भी लोगों में यह श्रान्त धारणा फैली हुई है कि भारतीय लोग ऐतिहासिक कल्पना से भी सर्वथा अपरिचित थे। परन्तु यह धारणा निर्मूल तथा अप्रमाणिक है। यास्क के कथनानुसार ऋग्वेद में ही त्रिविध ब्रह्मा के अन्तर्गत “इतिहास-मिश्र* मन्त्र पाये जाते हैं छान्दोग्य उपनिषद्‌ में सनत्कुमार से ब्रह्मविद्या सीखने के अवसर पर नारद मुनि ने अपनी अधीत विद्याओं के अन्तर्गत “इतिहास-पुराण' को पजूचम वेद बतलाया है। इस संयुक्त नाम से स्पष्ट है कि उपनिषद्‌ युग में दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध की भावना क्रियाशील थी। यास्क ने अपने निरूकत में ऋचाओं के विशदीकरण के लिए ब्राह्मण ग्रन्थों की कथाओं को *“इतिहासमाचक्षते' कहकर उद्धृत किया है। इतना ही नहीं, निरूकत में वेदार्थ व्याख्या के अवसर पर उद्धृत अनेक विभिन्‍न सम्प्रदायों में ऐतिहासकों का भी एक पृथक स्वतन्त्र सम्प्रदाय थों जिसका स्पष्ट परिचय “इंति ऐतिहासिंका:ः” निरूकत के इस निर्देश से मिलता है। इस सम्प्रदाय के मन्तव्यानुसार अनेक मन्त्रों की व्याख्या यास्क ने स्थान-स्थान पर की है। पुराणों के प्राचीन उल्लेख - पुराण के विषय में दो दृष्टियां प्राचीन काल में देखी जाती हैं। एक अर्थ में तो यह प्राचीन काल के चृत्तों के विषय में विद्या के रूप में प्रयुक्त होता था। दूसरे अर्थ में यह एक विशिष्ट साहित्य या ग्रन्थ के लिए प्रयुक्त किया गया उपलब्ध होता है। ऋग्वेद में “पुराण' शब्द का प्रयोग अनेक मन्त्रों में उपलब्ध होता है। परन्तु इन स्थलों पर “पुराण” शब्द केवल प्राचीनता का ही बोधक है। अन्यत्र (9/99/4) 1... त्रिंत कूपेडवहितमेतत्‌ सूकतं प्रतिवभी | तत्र ब्रह्ोतिहास - मिश्रमिडमिश्र॑ गाथामिश्रं भवति 1। - निरुक्त 4/6 2. ... ऋणग्वेद॑ भगवोडध्येमि . यजुर्वेदें सामवेदमाथर्वणमितिहासपुराणं पंचम. वेदानां वेदम्‌ | | 7 छान्दोग्य प/1. 3... ऋग्वेद 3/58/6, 10/30/6




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