भारतीय गौरव | Bharatiya Gaurav
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
191
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्० भारतीय गोरव
में जल का प्रपात हैं (जैसे व्यास) उनसे सफेद कोयला (जल-दक्ति )
पेदा किया जाता हैं । इस प्रकार हिमालय वनस्पति तथा खनिज
पदार्थों का भी घर दिखाई पड़ता हे। संक्षेप में कहा जा सकता
है कि हिमालय से भारतवर्ष को अनेक लाभ हैं । मानसून हवा को
रोक कर पानी बरसाना तथा उत्तरी ठंढी हवा को न आने देने का
महत्त्वपूर्ण कार्य भी हिमालय ही करता हे । बाहरी शत्रुओं के आक्रमण
को भी वह यथासम्भव रोकता हें । वनस्पति का घर और नदियों
को उद्गम-स्थान हिमालय हूं जिसके कारण भारत सुहावना तथा
हुरा-भरा दिखलाई पड़ता हें । इसमें भारतवासियों के लिए
ने
स्वास्थ्य-वद्धंक स्थान भरे पड़े हें ।
भावर
हिंमालय से दक्षिण तथा उत्तरी मेंदान के बीच भूभाग को
भावर कहतें है। वहां पर हिमालय श्रेणियां आरम्भ होती
हूं। वहीं पर असंख्य घाराएं ककड़ पत्थर का ढेर एकत्रित कर देती
हैं। इस तरह का पथरीला ढाल एक सिर से दूसरे सिरे तक फैला
हुआ हूं । छोटी छोटी नदियों का पानी इस कंकड़ के अन्दर छिप
जाता हैं । पानी से इस भाग में बड़े बड़े पेड़ पैदा हो आते हे परन्तु
खेती और आबादी के लिए यह स्थान अनुपयुक्त है। भावर की
पृथ्वी मेदान में मिल जाती हूं । यहां पर भीतर का पानी ऊपर की
मोर उठ जाता हे और वह स्थान दलदली हो जाता है । ऊंची घास
तथा पेड़ घने हो जाते हें । इस भाग को तराई कहते हू जिसमें
पीलौभीति, बहराइच, बस्ती, गोरखपुर और चम्पारण के जिले
सम्मिलित हैं । यहां पर आजकल धान तंथा गन्ना की फसल अच्छी
होती है। भारतवषे में गन्ना से शक्कर अधिकतर इसी भाग में
तेयार किया जाता है । तराईं के जिछे स्वास्थ्य के लिये सुखद
नहीं होतें ।
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