मेरी हिमाक़त | Meri Himaqat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
126
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कलाकार से. ११
शैँका में जो श्रस्पष्टता दोतीजो वक्रता दीखती है, वददी तो कला
की जान है।
घड़े को मैं सीधा करदूँ; तो शंकाओं का निवारण हो जायेगा,
अस्पष्टता खुल जायेंगी, वक्रता मिट जायेगी । स्पप्ता झ्ौर सरलता
की सित्ति पर ठुम्हारी कला एक क्षण भी न टिक सकेगी । तुम्हारे
लिए वह स्वागत की वस्ठु नद्दीं। तुम्दारी कला आवाद रहे, इसी-
लिए मैं घड़े की आधी खोपड़ी पर अरंगुलि-ताइन किया करता हूँ ।
ऐसी कल्याणकारी प्रक्रिया को ठुम कला के लिए; घातक समझ
बैठे दो--यदद कितने श्राश्चर्य की बात है !
सुना था कि पोषणु-क्रिया में कला का दशन होता है, पर मुझे
तो उसका संपूर्ण दर्शन शोपण-क्रिया में हुआ | जाड़े के दिनों में घी
तुम घड़े में से टेढी अंगुलियों से निकालते दो--सीधी अंगुलियों से
तुमने कमी शोषण किया है ? सो चक्रता में ही कला का विकास है ।
समन्वय के इस युग में राजनीति झ्ौर कला के बीच कोई ऐसा
भारी मेद नही रहा । रहा होगा कोई प्रागैतिदासिक युग, जब राज-
नीति तो एक रास्ते जाती होगी, श्रौर कला दूसरे रास्ते । तब शायद
कला उपयोगितावाद के दर्पण के सामने खड़ी होकर श्रपना सौदय
निद्दारती होगी । तंत्र ठम्डारी कला का इृदय सरल या मुग्ध रहा
दोगा--श्राधुनिक कलाविदों की भाषा मे “सड़ा” । श्ौर तब कला
श्राभौड़ी-सी होगी, सलौनी नदी ।
जैंसे श्राघुनिक राजनीति में सीघे वात करना गुनाह है, वैसे ही
कला में पेचीदा माग॑ से दटना वेढंगामन है ।
उपयोयिता से तुम्दारी ललित कलाशओं का सदा असहकार-सा
रहता है । ठुम्हास प्रश्न है कि सिगरेट के धुँ का शूत्य झन्तरिक्ष
User Reviews
No Reviews | Add Yours...