धरती विहंसी | Dharati Vihansi

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Dharati Vihansi by प्रकाश सक्सेना - Prakash Saxena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घरती बिहँसी अ...... ह बिहारी इब्जीनियर साहब को श्रनेक धन्यवाद देकर बिदा हुप्रा, गांव को लौटते हुये उसने कुछ फाबड़े श्रौर कुदाल भी खरीद लिये, यह सोचकर कि नाला खुद जाने के बाद भी उनका उपयोग पंचायत गाँव के रास्ते दि ठीक कराने में कर सकती है | .... परन्तु जब एक हफ्ते के स्थान पर दो हफ्ते बीत गये भ्रौर गांव में श्रोवरसीयर नहीं झ्राया, तो बिहारी की चिता बढ़ गई ग्रौर उसने पुनः शहर की राह पकड़ी । कौशल साहब ने उसे देखते ही पहिचान लिया भर उसके कुछ कहने के पहले ही बोले, “भाई, इधर बड़े साहब के भरा जाने की वजह से श्रोवरसीयर को नहीं भेज सका, मैं स्वयं लज्जित हूँ, लेकिन श्राप चिंता न करें, इस बार मैं स्वयं श्रोवरसीयर के साथ श्राऊँगा श्रौर भ्रपने सामने ही सब काम कराऊँगा, श्रापको शायद विद्वास नहीं हो रहा है, श्रच्छा, तो लीजिये श्राप तारीख भी ले जाइये, इसी महीने की बारह तारीख को मैं श्राऊँगा । श्रापको फिर श्राने की भ्रावश्यकता नहीं होगी । सिर्फ चार ही दिन की बात है, श्राप अभी से मन छोटा न करें, नहीं तो फिर काम कसे हो सकेगा ?' ..... कुंडा ग्रामवासियों को वास्तव में प्राइचयें हुभा जब उन्होंने बारह तारीख को कई साहबों को तालाब के श्रास- पास की भूमि का निरीक्षण श्रौर नाप-तोल करते देखा, . बिहारी की योजना में उन्हें कुछ कुछ विश्वास होने लगा, इज्जीनियर साहब ने जांच पड़ताल के बाद बिहारी को बताया । 'नाला तालाब के दक्षिण-पूर्वी कोने से खोदा जाना चाहिये, क्योंकि उधर ही तालाब का सबसे अधिक ढाल है श्रौर उधर से नाला ले जाने में कोई खेंती योग्य जमीन भी नहीं पड़ती, जिससे किसी की हानि हो, नाला करीब पोन मील लम्बा खोदना पड़ेगा श्रौर उसकी चौड़ाई भी छः गज से




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