श्री स्वामी रामतीर्थ उनके सदुपदेश-भाग ५ | shri swami ramtirth unke sadupdes vol ५

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(7 शहर )7 स्थान, पर इम फंदते. हैं, * मजुष्य को केंव् रोटी-:पर दी न जीना -चाहिये. *। इन कथनी पर फिर विचार, करो 2 इन्हें खूब, समभहो । प्रभु की माथेना का. मतताय “यदद 'नददीं डे कि, तुम मांगते रहा; इच्छा करते रदो । कदापि नददीं । इस प्रार्थना का 'झमिपाय यही, दे कि) एक संन्राट - भी, मंदाराजधियंज भी, जिसे नित्य की रोटी न. मिलेंने की ज़रा सी मी झझाशं हा . नदी दे, यद. प्रार्थना करें । यदि ऐसा है; तो स्पष्ट दे कि, *अाज दम इमारी' नित्य.की रोटी दीजये” का अर्थ यद: नदी दे कि दम संगतापन का ढंग शरद करें शोर 'लौकिक' सम्पत्ति की याचना करें । पसा नहीं है । प्रार्थनां का ' शर्थ यहीं है कि; दरेक, घहद चांद राजकुमार दो या राजा, छाथवा साधु; अपने इदे गिर्दे'की सब चस्तुओं को, सम्पूर्ण द्रव्य श्र प्रचुरता को, झपना नहीं ईश्वर का समझे थे 'मेरी. नहीं है, मेरी नहीं डे । इसका श्रथ भमिक्षा मांगना नदीं दे, परन्तु त्याग हैं; देना है, प्रत्यक वस्तु का इंशवरापेस करना है । सम्नार यद्द प्राथना करते समय शपने को उस झचस्था में लाता हैं जिसमें झपने कोप के सब रत्न, अपने भवन का सम्पूण पश्वय, स्वयं भवन तक, चढ़ परित्याग करता दे, दे देता हे, इन सच चस्तुअ्! पर से श्रपना स्वत्व हटा लेता है । यह प्रार्थना करते समय चद्द साघुझों के भी साधु दै। वह कहता दे, ' यद इंश्वर का दै, यदद मेज़, इस मेज़ पर की दरेक चीज़, उसकी है, मेरी नहीं 1 मैं काई भी चस्तु नहीं रखता | जो कोई चीज सु झाकर प्राप्त दोती है चदद मेरे प्रिय फे पास से झाती थे ” । स्वामी रामती थे ठीक उन्हीं दिन पंजाय [युक्कप्रदेश-संपादक] की किसी नदी में डूब गये जब उनकी धार्सिक मे घा में सचो-




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