भारतीय राष्ट्रीयता का अग्रदूत | Bhartiya Rashtriyata Ka Agradut

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Bhartiya Rashtriyata Ka Agradut by कणसिंह - Kansingh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रावकथन मैंने बडी रुचि से और यदा-वदा कुछ भाव विभोर होकर इस छोटी-सी पुस्तक वो पढ़ा तो मुझे अपने वचपन और जवानी के वे दिन याद आ गए जब श्री अरविन्द “व दे मारतम' मे अपन प्रसिद्ध लेप लिखा करते थे। मै उन दिनो इग्लैण्ड म स्कूल का छात्र था और वाद म वेम्ब्रिज के वॉलेज मे रहा । भारत म होने वाली घटनाओआ की सूचना मुझे वम ही मिल पाती थी, वयाकि इग्लण्ड म उनके समाचार कम ही पहुँचते थे । फिर भी कुछ वाते पहुँच ही जाती थी । वग-भग के विरोध में हुए आदोलन न हम लोगा के हृदय को भी जोश से भर दिया था । उन दिनो के विय्यात व्यक्तिया में श्री अरविन्द का स्थान अग्रणी था और वह निस्सन्देह सभी नवयुवका के श्रद्धाभाजन थे। इसलिए उस समय के अरविद के विपय मे, विशेषवर “वन्दे मातरम' में प्रकाशित उनके लेखो के विपय म, पढने पर मेरी पुरानी स्मतियाँ फिर से ताज़ी हो गइ। यह वास्तव में अदूभुत वात है कि जिस व्यक्ति के प्रारम्भिक जीवन के निर्माण काल के चौदह महत्त्वपूण वप अर्थात्‌ सात वप वी आयु से लेकर इवकीस वप की आयु तक के वप, यूरोप की प्राचीन भायाआ की णिक्षा ग्रहण करने में बीते, और वे भी इग्लण्ड म, वही वाद मे उस प्रवल भारतीय राष्ट्रवाद का उज्लायक वन गया जिसवी पृष्ठभूमि भारतीय दशन और आध्यात्मिक ज्ञान पर अधिप्ठित थी । सक्िय राजनीति के मच पर उनकी भूमिका वहुत ही अल्पकालिक (सन १६०४ से १६१० ई० तक) थी। सन्‌ १६१० मे वह पाण्डिचेरी चले गए । पर उक्त पाच वप की अवधि में भारत के राजनीतिक आकाश मे प्रचण्ड सूय के समान वह देदीप्यमान रहे । भारत के नवयुवका पर उनका प्रवल प्रभाव पड़ा । बग भग के विरुद्ध जो प्रचण्ड आन्दोलन हुआ उसकी दाशनिक प्रेरणा उ ही से मिली । वस्तुत उसी प्रेरणा ने महात्मा गाधी के नेतत्व में हुए प्रवल आन्दोलनो के निए मच प्रस्तुत क्या ।




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