श्री श्री 1008 श्री द्रौपदां जी महाराज का जीवन - चरित्र | Shri Shri 1008 Shri Draupadan Ji Maharaj Ka Jivan - Charitra

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Shri Shri 1008 Shri Draupadan Ji Maharaj Ka Jivan - Charitra by मोहनदेवी जी जैन - Mohanadevi Ji Jain

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मोहनदेवी जी जैन - Mohanadevi Ji Jain

Add Infomation AboutMohanadevi Ji Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(: डे 2) दया का देरदा ..उपदेश . दा! _ नयज्ुर, जमाने को । 23 भर रहा ज्ञान के रत्ना,से “र” दिल के खुज़ाने को 11911 के न््डू ला भड कूरिस औओपधि '“झौ” खिलाता है किसब दु य् दृर् दो जायें । -परमपद “प” दिलाता है -कि..चन्थन चूर.दो जायें 01 , .ि” ऊदता दैग्मदिसा घर्म का! पालत किया करना | 7 द*) फदता है पराई ददें में तन सी दिया ऋरना ॥ह॥ “यही चपदेश है “शा का मेसे की श्ोन पर अरेलां । 'समकर्ी सबको श्र '्यापसा सिव्ी व्यथा हरना ॥्ट लनप् न प न कह रहा “बिन्दु” ऊपर का विपय की घाराना ' स्यागो ' 1 भलाई कर चलो जग को जगाशों और पद जागो 1४ _ जेन सिद्धान्त, चीणा के यह मीठे तार्‌ हैं सातो ) डर जाये जो कोई इनको ये करते पार. हैं _सातों ॥६॥)




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now