प्रमेय कमल मार्त्तण्ड | Pramey Kamal Marttand

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Pramey Kamal Marttand  by आयिका जिनमतीजी - Aayika Jinamatiji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| है३ ] दाब्दाम्भोरुह भास्कर! प्रथित तकें यम्थका र: प्रभा- चर्द्रास्पों मुनिराज पण्डितवर: श्री कुण्डकुन्दान्वय: ॥। झान:प्रभाचन्द्रको इस लेखमें जो विशेषर दिये हैं, उपयुक्त हैं । बास्तवमें वे दब्दरूपी कमलों- को [.शब्दांभोज भास्कर नामक ग्रन्थ ] खिलाने के लिये सुर्यके समान प्रौर प्रसिद्ध तक॑ प्रत्थ प्रमेय कमल मार्सण्ड के कर्ता हैं । जैन स्यायमें ताकिश दृष्टि जितनी इस ग्रन्थमें पायी जाती है भ्न्यत्र नहीं है। प्रमेयकमल मार्शण्ड, न्याय कुमुद चंद्र, शब्दाम्भोज भास्कर, प्रवचनसार सरोज भास्कर, तसवायथे- '* बृत्ति पदविवरण, ये इतने ग्रन्थ प्रभाचंद्राचायं द्वारा रचित निर्विवाद रूपसे सिद्ध हुए हैं । १. प्रमेयकमलमात्त ण्ड--यह भ्राचायं माशिक्थनंदीके परीक्षामख सूत्रों-टीका स्वरूप प्रम्थ है । मत मतांतरोंका तके वितर्कोंके साथ एवं पूर्व पक्षकें साथ निरसन किया है । जैन न्यायका यह धट्टितीय ग्रस्थ है । अपना प्रस्तुत ग्रन्थ यही है, जैन दर्शनमें इस कृतिका बड़ा भारी सम्मान है । र न्यायकुमुदचन्द्-जैसे प्रमेयरूपी कमलों को विकसित करनेवाला मास ण्ड सहदा प्रमेय कमल मार्तष्ड है बसे हो न्यायरूपी कुमुदों को प्रस्फुटित 'करनेके लिये चस्द्रमा सदश न्याय कुमुदचन्द्र है । ३ तत्त्वथंवृत्ति पद विवरण--यह ग्रन्थ उमा स्वामी ध्राचायं ढारा बिरखित तत्त्वाथं सूत्र पर रची गयी पूज्यपाद झाचायेकी कृति सर्वाधे सिद्धिकी वृत्ति है । वेसे तो पूज्य पादाचायंने बहुत विशद रीत्या सूत्रोंका विवेचन किया, किन्तु प्रभाचन्द्राचायंने सर्वाथसिद्धिस्थ पदोंका विवेचन किया है । ४. दाव्दाम्भो जभास्कर--यह दब्दसिद्धि परक प्रन्थ है । शब्दरूपी कमलोंको विकसित करने हेतु यह ग्रन्थ भार्कर यबत्तू है । ये स्वयं पूज्यपाद झ्राचायंके समान वेयाकरणी थे, इसी कारण पूज्यपाद द्वारा रचित जेनेत्द्र व्याकरण पर शब्दाम्भोज भास्कर वृत्ति रची । भर प्रवचनसारसरोजभास्कर-जेंसे श्रन्य ग्रस्थोंको कमल श्रौर कुमुद संज्ञा देकर भपनी कृतिकों मार्सण्ड, चन्द्र बतलाया है, वेसे प्रवचनसार नामक कु दकुद श्राचार्यके ध्रष्यात्म ग्रन्थको सरोज संज्ञा देकर अपनी वृत्तिको भास्कर बतलाया । झापका ज्ञान न्याय और दब्दमें ही सोमित नहीं था, भ्रपितु झाह्मानुभवकी मोर भी भग्रसर था । जिन गाथधाधों की वृत्ति भमृत चन्द्राचायं ने नहीं की उन पर भी प्रभाचन्द्रा चाय॑ने वृत्ति की है । समाधितन्त्र टीका श्र।दि भ्रस्य ग्रस्थ भी प्रापके हारा रचित माने जाते हैं किन्तु इनके विषयमे विद्वानोंका एक मत नहीं है । इसप्रकार प्रभाचन्द्राचा्य सामिक बिढानू, ताकिक, वेयाकरण श्रादि पदोंसे सुशोभित श्रेक्ठतम दि० श्राचार्य हुए, उन्होंने श्पने गुणोंह्ारा जेन जगतकों श्रनुरंजित किया, साथ ही भ्रपनी कृतियां एवं महाब्रतादि ध्ाचरराद्वारा स्दपरका कल्याण किया । हमें प्राचायंका उप- कार मासकर उनके चरों में नतमस्तक होते हुए बाचना करनी है कि हे गुरुदेव ! श्ापके प्न्थों में गति हो एवं हमारी झात्मकल्याणकारी प्रवृत्ति हो ।




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