बालक विवेकानन्द | Baalak Vivekanand
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
33 MB
कुल पष्ठ :
446
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)३२ चिवेकानन्द-चरित
इंसाइ मिदानरी निश्चिन्त होकर-हीदनों ( स०६६०००४) को अन्घकार से आलोक
में लाने के लिए जी जान से लग गए । मिशनरियों के दल पर दल इस देवा
में आने ढगे । धर्म का. प्रचार करने के लिए. पहले पहल उन्हें बंगला भाषा
सीखनी पड़ती थी । धीरे धीरे प्रचार-कार्य में आने वाढे विध्ों को सोचकर
उन्होंने स्थिर किया कि दिश्षा के विस्तार के साथ ही अगर ईसाई धर्म का
प्रचार करना प्रारम्भ कर दिया. जाय तो प्रचार का काम अधिक सरलता से
चल सकेगा । इस प्रकार वे स्थान स्थान पर विंद्य,ल्य खोलने लगे तथा झिक्षा
के द्वारा कोमलमति बालक तथा तरलमति युवकों के चित पर प्राणपण से
ईसाई धर्म की महिमा की मोहर लगाने के लिए प्रवत्त हुए। साथ ही साथ
यह बात है कि कुछ उदारहदय मिदानरी अथवा अंग्रेज, जो केवल दिक्षा
प्रचार के लिए; ही दिक्षा दान करने को तैयार हुए थे तथा अपने इस उद्देद्य
की पूर्ति के लिए विघ्न व विपत्ति के साथ छडें थे -- हमारी जाति इतनी अकू-
तश नहीं कि उनकी पवित्र स्मति को आसानी से जाति के इतिहास से मिटा दे |
१८०० ई० मैं पहले पहल कलकता नगर में फोर्ट विल्यम कलिज
स्थापित हुआ | ठीक उसी वर्ष आधुनिक शिक्षा के अन्यतम जन्मदाता डेविड
द्ेमर बंगाल में पघारे । ये मनीषी नास्तिक होने पर भी अनेक सदुगु्ों से युक्त
थे। कुछ दिनों बाद उन्होंने अन्य सब कामों को छोड़कर एकम/त्र शिक्षा-
प्रचार में ही आत्मनियोग किया था |
इसाई मिशनरीनण धीरे धीरे साहस पाकर धर्म-विद्ेषु का विष उगले
ले | ,/#प्राचीन, पंगु तथा जड़पिण्ड सदुश हिन्दू समाज ने कान खड़ेकर सुना
कि उनका आचार-व्यवहार, रस्म-खिाज सभी निन्दनीय है, भयावह है तथा
पैद्याचिकता से प्र्ण है ! इसके परिणाम में वे इस लोक में सर्व प्रकार के सुख-..
भोग से वंचित हैं तथा परछोक में भी अनन्त नरक भोगेंगेय' जितने उपायों मै ..
निन्दा की जा सकती है उनमें से मिदयनरियों ने किप्ी को भी न छोड़ा । एक '
अंग्रेज महिला मिदानरी ने हिन्दू धर्म को गाछी व अभिशाप देने के छिए योग्य ,
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