कुछ बातें कुछ लोग | Kuch Bate Kuch Log

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Book Image : कुछ बातें कुछ लोग  - Kuch Bate Kuch Log

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कुछ बातें : कुछ नोग [ १४ --हों, देखिये क्या होता है। --जुछ अन्पमनहक भाषि से यह दोसती हैं 1 उसके दाद हैं का हु छेड देता हू'माएको सभी हारे-जीते संसद सदस्यों मे सके बनाये रखना चाहियें। आखिर वे हो तो आपके सूम होंगे पूरे भाएत मे । नर अच्छा हो कि एक दिन बाप संवों को चाय पर बुलाकर बातें भी करें । इसे सरवों को दिलासा होगा | ---मान ने सोते मैं तेरा मेहमान के समान मैं अपनी चाति कट्ता हूँ । निफित यह चात उन्हें जंचनी है । उसी समय बहू निश्चय करती हैं (क दो न दिनों दाद सदों को बहू चाय पर बुलायेँगी और तीसरे या चौथे दिन बुलाती मी हैं । मैं कमरे मे बाहर निकलता हूँ--धवन मिलते है, फोकी हँसी, बुक व्यक्तित्व, गिरा रीर । दौन्दार दिनों पहुले गर्द और गौरव तथा सत्ता के मद से भूलता हुआ १ ०, मफरदरजग, प्रधानमत्री का निवास स्थान उजडा-सा दिखलाई देता है, वैसे ही जंसे पिछड़ा पढ़ा हो और अस्दर की चहुकने वाली चिडियाँ उड गई हों अथवा थमत्त मे नीम के पत्ते कर गये हो केवल टूँठ खड़ा हो। १ अप्रैल, १६७७, दिस्ती 5०१० दिनों के बत्दर आज इन्दिरा जी से चौथी वार मिला । बढुत सारी खातें सठन के सम्वस्थ मे उन्होंने कीं । वे किसी पकार कॉप्रेस अध्यक्ष थी देवकान्त बरुभा को नहीं चाएुती हैं दि दे एक दिन के लिए भी अध्यक्ष पद पर दते रहे । कहने लगी कि वर जी सी० एफ डी० वालों से भी बातें कर रंहू है । मैंने मूछा कि इन्हें हटा कर किसे शांग्रेस का अव्यक्ष बनाया जाये, तो इस प्रश्न को वे पद हानि आप लोग हो सोचें विक मौजूदा सिथाति में कौन कारगर अध्यक्ष हो सकता है। नुछ लोग चौहान साहब का नाम सेते हूँ कि कुछ दिनों तक उन्हें ही बना दिया जाय --मैंने कहां! “दोनों पं पर थे ही रहेंगे तो पसा लगेगा ? --उन्होंने कुछ हींठ दिचका भरे कह । मैं उनका भाव सेमक गया 1 कर फुछ देर तक चुप्पी रही, फिर वे वोली--कुछ लोग तो कहते है कि मुन्हे हो जाना चाहिए, सेकित यह ठोक महीं होगा । मैं उनभी वातें समर. कर भी लू समभ, संबग छोर कट से योल पडा--- भरी समक में घभी जारकों छ. मदीने-माल भर बुछ नहीं होना चाहिए ौर मोल रहना चाहिए का बाद भारव की जनता स्वर्य आपको बुलामिगी । रू दर, दि इष्दिश जो से मैंने पूा--मकान का कया हुआ ? बह के गतिपट' करेंगो हे है व




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