संतान पालन | Santan-palan
श्रेणी : आयुर्वेद / Ayurveda
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सन्तान पालन श्द्े
के कह... चिप अल रभा» ील ही धनी ७. ैअ शा सा». अभी ता अचल
ख्री-पुरुष ब्रह्मचयं की अवधि
ख्रो-त्रचचय के सम्बन्ध में अधिक न लिखकर वेद शञाख्र का
प्रमाण दे देना यवेष्ट हैः--
घहाचयेंश कन्या थुचानं विन्दुतेपतिमू ।
_.. --अयवंवेद
पश्चविंशे ततेवरपें पुमाछारी हु पोडशे ।
समत्वा गतवोयीं ती जानीयात्कुशलेमिपक् ॥
-सुट्ुत
जर्थात्त--घ्रद्मचये का पालन करने के घाद कन्या अपने येग्य
युवक-पति को प्राप्त करती हे ! ं
यदि दम अपनी बुद्धि से विचार करते हैं, तब भी यह बात
उचित जैचती दै कि पुरुप-ख्रा के! इंश्वबर की आर से समास
अधिकार है--वेद पढ़ने का । वड़े आश्चय की वात है कि जिस
स्री-समाज पर पुरुप-जाति की चन्नति और अवनित निर्भर दै उसे
दी लाग चेद्क ज्ञान प्राप्त करने का अधिकार नहीं देते । शास्र-
कारों का वचन दै.--“नास्ति मातृ समायुरू” यानी माता के
समान युरु ससार में कोई नदीं है ! साचने की वात दै कि यदि
मादा दी सूख रदेगी ते उसकी सन्तान सतेाणुणी और विद्वान
केसे दागी ?
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