संतान पालन | Santan-palan

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Santan-palan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सन्तान पालन श्द्े के कह... चिप अल रभा» ील ही धनी ७. ैअ शा सा». अभी ता अचल ख्री-पुरुष ब्रह्मचयं की अवधि ख्रो-त्रचचय के सम्बन्ध में अधिक न लिखकर वेद शञाख्र का प्रमाण दे देना यवेष्ट हैः-- घहाचयेंश कन्या थुचानं विन्दुतेपतिमू । _.. --अयवंवेद पश्चविंशे ततेवरपें पुमाछारी हु पोडशे । समत्वा गतवोयीं ती जानीयात्कुशलेमिपक्‌ ॥ -सुट्ुत जर्थात्त--घ्रद्मचये का पालन करने के घाद कन्या अपने येग्य युवक-पति को प्राप्त करती हे ! ं यदि दम अपनी बुद्धि से विचार करते हैं, तब भी यह बात उचित जैचती दै कि पुरुप-ख्रा के! इंश्वबर की आर से समास अधिकार है--वेद पढ़ने का । वड़े आश्चय की वात है कि जिस स्री-समाज पर पुरुप-जाति की चन्नति और अवनित निर्भर दै उसे दी लाग चेद्क ज्ञान प्राप्त करने का अधिकार नहीं देते । शास्र- कारों का वचन दै.--“नास्ति मातृ समायुरू” यानी माता के समान युरु ससार में कोई नदीं है ! साचने की वात दै कि यदि मादा दी सूख रदेगी ते उसकी सन्तान सतेाणुणी और विद्वान केसे दागी ?




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