वासवदत्ता कथाश्रित रूपक : एक तुलनात्मक अध्ययन | Vasavdatta Kathashrit Rupak :ek Tulnatayamak Adahayan

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Vasavdatta Kathashrit Rupak :ek Tulnatayamak Adahayan by अनीता सिंह - Aneeta Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(9) सत्काव्य के परिज्ञान से ही व्यवहार करने वाले सब प्रकार के लोगो को अपने-अपने व्यवहार का पूर्ण एवं सुन्दर ज्ञान प्राप्त होता है। चतुर्वर्गफलास्वादमप्यतिक्रम्य. तद्ठिदाम्‌ | काव्यामृतरसेनान्तश्चमत्कारो वितन्यते || उससे सहदयों के हृदय में चतुर्वर्ग फल की प्राप्ति से बढकर आनन्दानुभूतिरूप चमत्कार उत्पन्न होता है। आचार्य रूद्रट सम्मत काव्य प्रयोजन :-- आचार्य रूद्रट चतुर्वर्ग प्राप्ति को काव्य प्रयोजन मानते हैं- ननु काव्येन _ क्रियते.. सरसानामवगमश्चतुवर्ग | क लघु मृदु च नीरसेभ्यस्ते हि त्रस्यन्ति शास्त्रेभ्य: | | आचार्य मम्मट सम्मत काव्य-प्रयोजनः--प्रखर प्रज्ञा काव्यप्रकाशकार आचार्य मम्मट काव्य के छह प्रयोजन मानते हैं - काव्य यशसेंऊर्थकृते व्यवहारविदे शिवेतरक्षतये | सद्य: परनिर्वृतये . कान्तासम्मिततयोपदेशयुजे | | दे अर्थात्‌ काव्य का यशजनक, अर्थ का उत्पादक, (लोक) व्यवहार का बोधक, अनिष्ट का नाशक पढने (देखने या सुनने आदि) के साथ ही (सद्य) परम आनन्द का देने वाला और स्त्री के समान (सरस रूप से कर्त्तव्याकर्तव्य का) उपदेश प्रदान करने वाला होता है दर इनके अतिरिक्त अन्य आचार्ये ने भी काव्य प्रयोजनों पर अपने-अपने ..... . मत स्पष्ट किये हैं । ध्वन्याचार्य आचार्य आनन्दवर्धन ने काव्य प्रयोजनों का पृथक. रूप से उल्लेख न करके ध्वनि स्थापना के प्रसंग में ही उसका संकेंत दे दिया . है- तेन ब्रूम: सहदयमनः प्रीतये तत्स्वरूपम्‌ | 1 - वकोक्तिजीवितम्‌ ..... - 1: 5. 2. - काध्यालंकार रूद्रट ... - 12 :1 न 3-.. काथ्यप्र काश. -व्याख्याकार-आचार्य कि्लेश्वर-उल्लास प्रथम शइलोक -2 बन . ध्वन्यालो का, “नल दा,




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