अध्यात्म रामायण का आलोचनात्मक अध्ययन | A Critical Study Of Adhyatma Ramayan

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A Critical Study Of Adhyatma Ramayan by मुन्नी शुक्ला -Munni Shukla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पुदम वि वॉक समय पाला को साया जग वहन दंड लेनवता, शलवपों वि, इतलाा संवाद, दलनवता बताएगा हवन, दमया लव सारा कडगाई देना नमन दास कला विद पफिनों पल सवाल पाया शान हलवा कवानों विदा करतीं नये पर म्याँदा-पुरूघोतम राम के चरित्र का गान करने वाले आदि कवि महर्षि वाल्मीकि हैं। आदि कवि की कृति य॒र्गों से कर्तव्य और धर्म के क्षेत्र में जन-मानस को अनुप्राणित करती रही है। वाल्मीकि-रामायण मैं वर्णित रामकथा का बहुत समय से अनेक स्यों मैं वर्णन होता रहा है। इसी मुल-प्रौत से राम-कथा की अन्य धारायें भी सिकली हैं। इनमें नयी कल्पनाओं तथा नवीन उद्भावनाओं का भी समायेश हुआ है। महर्षि वाल्मीकि ने मर्याँदा-पुरूघोतम राम का क्षत्रिय राजा के स्थ में वर्णन किया था। बाद में जब राम को विष्ण या नारायण का अवतार माना जाने लगा. ॥ पुराणों मैं राम को विष्ण का सातवा अवतार कहा गया है|, तब राम कथाओं में दिव्यतत्व का भी प्रभाव यत्र-तत्र सुस्फुट होने लगा। इस कोठि की रचनाओं में “अध्यात्मरामायण” भी एक है। इसमें राम पर ब्रहम माने गये हैं और सीता को मुलप्रकुत्ति कहा गया है। इतमें अद्रैत-ज्ञान और राम भक्ति को मोक्ष का मार्ग बताया गया है। इस ग्रन्थ में वर्णित भगवान राम के चरित्र मैं वह दिव्य आभा श्वमू अलौ किक शक्ति विधमान है, जो पाप: पड0कनिमाज्जित' हृदयों को भी पवित्र कर देने की साम्थर्थ रखती है। उन राम के नाम“ में भी अप्रततिम शक्ति सिहित है। वाल्मीकि के ग्रन्थ की तरह इसमें भी सात काण्छ हैं और झन काण्डों केवेही नाम रखे गये हैं। कथा यद्यपि वाल्मी कि-रामायण की तरह है, किन्तु व वि व व व या कलानक मयंक समन्यत, सेब्यावर । अध्यातत्प्ररामायण मैं वर्णित अहल्या तथा अन्य शापित्त राक्षसादि। 2 राम का उल्टा नाम जप कर ही रत्नाकर-सा दस्सु वाल्मीकि महर्षि बन गया।




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