यूरोप की भक्त स्त्रियाँ | Europe Ki Bhakt Striya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
108
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)साध्वी रानी एलिज़ावेथ १
रुखा-पूखा रामका टुकड़ा चिकना और सोना क्या ?
कहत कमाल प्रेमके मारग सीस दिया फिर रोना क्या ?
एटिजावेय जब ॒राजमहठमें पतिके साथ अतिथियोंसहित
भोजन करने वैठती तो सबको विविध भोजन परोसकर ख्य॑
निरामिप सादा भोजन करती, तनिक-से मधुके साथ साधारण
रोटियाँ खा लिया करती और अपने मीठे वचनोंमें सबको इस
प्रकार भुढाये रखती कि किसीका इस -वातकी ओर ध्यान भी
नहीं जाता कि उसने अपने लिये क्या परोसा है। खामीके
आग्रहसे दो-एक वार राजसी पोशाक पहननेके अतिरिक्त वह
सर्वदा साधारण वख्र ही पहनती । परन्तु वह साध्वी रमणी
सादी पोशाकम्मे भी दिव्य प्रकाशसे झलक उठती ।
इस समय एछिजावेयका हृदय प्रेमसे पूर्ण हो गया था,
उसने ृदयके इस विशुद्ध प्रेमको तत्काल ईख्वरके अ्पण कर
दिया । वाल्यकालका दौन-भाव दिनोंदिन बढ़ने लगा । छोटे-
बड़े सबके साथ समान प्रेम करनेपर भी ईश्ररके प्रति उसका
असीम प्रेम और त्राठकवत् सरऊू विद्वास था । उपासना-गृहकी
घण्ठी वजते ही वह आनन्दपूर्वक वहाँ जाकर भक्तिमाव और पवित्र
चित्तसे ईश्वर-मजनमें ठग जाती । गुरुवारके दिवस बारह कोढ़के
रोगियोंके पैर धोकर वह मिखारिणीके वेशमें दौन-भावसे नंगे पैर
उपासना-घरमें जाती । रात्रिमें, कट्ट भोगते समयका प्रभुका चित्र
सामने रखकर घुठनोंकि बठ बैठकर वह उनका ध्यान और प्राथना
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