यूरोप की भक्त स्त्रियाँ | Europe Ki Bhakt Striya

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Europe Ki Bhakt Striya by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साध्वी रानी एलिज़ावेथ १ रुखा-पूखा रामका टुकड़ा चिकना और सोना क्या ? कहत कमाल प्रेमके मारग सीस दिया फिर रोना क्‍या ? एटिजावेय जब ॒राजमहठमें पतिके साथ अतिथियोंसहित भोजन करने वैठती तो सबको विविध भोजन परोसकर ख्य॑ निरामिप सादा भोजन करती, तनिक-से मधुके साथ साधारण रोटियाँ खा लिया करती और अपने मीठे वचनोंमें सबको इस प्रकार भुढाये रखती कि किसीका इस -वातकी ओर ध्यान भी नहीं जाता कि उसने अपने लिये क्या परोसा है। खामीके आग्रहसे दो-एक वार राजसी पोशाक पहननेके अतिरिक्त वह सर्वदा साधारण वख्र ही पहनती । परन्तु वह साध्वी रमणी सादी पोशाकम्मे भी दिव्य प्रकाशसे झलक उठती । इस समय एछिजावेयका हृदय प्रेमसे पूर्ण हो गया था, उसने ृदयके इस विशुद्ध प्रेमको तत्काल ईख्वरके अ्पण कर दिया । वाल्यकालका दौन-भाव दिनोंदिन बढ़ने लगा । छोटे- बड़े सबके साथ समान प्रेम करनेपर भी ईश्ररके प्रति उसका असीम प्रेम और त्राठकवत्‌ सरऊू विद्वास था । उपासना-गृहकी घण्ठी वजते ही वह आनन्दपूर्वक वहाँ जाकर भक्तिमाव और पवित्र चित्तसे ईश्वर-मजनमें ठग जाती । गुरुवारके दिवस बारह कोढ़के रोगियोंके पैर धोकर वह मिखारिणीके वेशमें दौन-भावसे नंगे पैर उपासना-घरमें जाती । रात्रिमें, कट्ट भोगते समयका प्रभुका चित्र सामने रखकर घुठनोंकि बठ बैठकर वह उनका ध्यान और प्राथना




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