श्री जैन श्वेताम्बर तपागच्छ संघ का वार्षिक मुख - पत्र | Shri Jain Swetambar Tapagachchh Sangh Ka Mukh - Patra
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
160
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)और उन्हें ऐसी ही बुद्धि सकाना 1 दासी की
प्रार्थना स्वीकार ना |
अपने पति के समय पर ने श्राने पर जेसे
बाज देख कर कवूतर ध्रूजता है वर पंर्व
फनाता है वैसे वह घवराने शरीर घजने लगी
चत्र निन्न में चिन्ता के चहें उद्धलने लगे,
दीड घग करने लगे, विरहणी बनकर घर में
चलवनवार काटने लगी....पिजरे में बन्द शेरनी
चक्कर काटते हुए देखती है बसे वह डरने
लगी बसों ने ब्राये.... क्यों ने आ्राये....
श्र एक तरफ श्रनिल श्रपने मियों के
साथ फाईव स्टार होटन में सुरा-युन्दरी के
नग्न नस्य में सरन था । धर्मपर्नी की चिस्ता
की फाइल टांट पर चढ़ा कर घर की फिन्र:
किये बिना बेप्िक बने हुए जठी 'लेटो में,
अ्रभध्य, ग्रप्रेय स्वादों में पागल बना हा
है। घर की ऐसी-तेसी, घरवाली की थी
एमानतसी जाय जहननुम से । मुझ वया लना-
ना, यहां जो ग्रानंद है बह घर तथा
चरवाली के पास सही ।
1:
रह प्रदर्शनकारी रंगन-राग के रंगीन
वस्पनाग्रों में भूल गये है....परसारी के शरीर
पे चपछा पतियता ससीन्य्मस, परनी को
से देगा है यह सिद्वास हवय से से निययल
दिया है ,...घपनी घमेपरनी
निमर यरस प्रेम में पनीर
सदर साममार उसमे
डण्प
बाज हु
ऋषि
व मररे
पु नर जज
नरमो मय
प्ग
नकाका का गंध नलक!
पम्प दर थम डर की
सन लू से
महा है धर
सुमपाइ्हर, श्रेय सवार दो
पद न
ऋगरप्ग पड पपस पर यमन
उप चले
उन
डैः
श्मनग्द सर
सहन मकासा सही है |
डक
कहे इमरविए कस
हि रे ््क आता
ररजर हे, सेंड ही व मरा दो,
न:
पर चल रहा हैं, उसका उसे पता नहीं होता ।
ठसलिए बह नटखट नखरे करने वाली
चंचल गुप्त रोगों को छपा कर श्रसेकों के
साथ रोगी के निरोंगी पृरुपों के साथ
शारार्कि सम्बन्ध स्थापित करनी है । ऐसी
कलचर प्रेम करने वाली सुन्दरी के साथ
सम्बन्ध स्थापित कर गंडी-गटर को पुनीत
गंगा मानकर उसमें डुबकी मारकर क्षणिक
श्रानन्द को श्रानन्द मानकर, गंदी गटर को
गंगा मानकर गंदे पानी को सिर्मल सानकर
थोड़ा-धोड़ा पीने में सन्तोप मानते है योर
अविश्वास की जीवन गाड़ी चलाने की प्रयुत्ति
में प्रचूत्त होने वाला श्रनिल अपनी पहनी के
प्रेम पुष्प की परिमल का प्यार कसे प्राप्त
कर सकता है । भ्रपनी शीलबनी परनी को
वहम श्रौर शंका की दृष्टि से देखना है....घात-
वात पर डराने है, घमकान हैं, हर समय हर
पल धमकी देने है हर सयर्य मे नुतस निकालते
हैं । श्रपराधी के रूप में अपराध देखने हुए
हाथ उठाने में चकने नहीं है । फिर भी श्रम्पूर्णा
श्रपने पति को स्ाराध्य देव सानकर जो कुछ
सहन करना पढ़ें सहन करती है, एक शब्द
भी चले छिना पति का सार्य करती है शोर
घर की इउजन नारी से है, यह पहावस
नरि्तिाथ का है । उसमे जरा भी सासी
सही रानी है ।
प्रपने पति सनिस को चपके में पर में
ते हा डेस्यो......ठ.. भ्रग्रपर्णा ज्गने मर मे
ध्रयन ससासों श्निय थे
नसिाय पुचवा घिरे
समर निगम में
बदल
!
रे. श्याम हा
कु शी
ददख्[ £यन्नाह ठटे
मूररा बह सगे ँ द
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