कबीरवचनावली | Kabirvachanavali

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Kabirvachanavali by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( शेर रितु वे सूफी और शेख तकी के चेठे थे; यदद बात निश्चित- रूप से स्वीकृत नहीं की जा सकती । शीयुत्त चेसूकट ने भपने अंथ में जितने प्रमाण दिसठाए हूँ वे सब बाहरी हैं। कबीर साइब के चचनों भथवा उनके अंयों से उन्होंने कोई प्रमाण ऐसा नहीं दिया जो उनके सिद्धांत को पुष्ट करे। बाहरी श्रमाणों की अपेक्षा ऐसे प्रमाण कितने मान्य और विश्वसनीय 'झैं, यद्द बतछाना व्यर्थ है । कवीर साहब कहते हूं-- मक्ती छायर ऊपजोी, लाये. रामानंद । परगट करी कबीर ने, सात दीप नी खंड ॥। चौरासी अंग की साखी, भक्ति का अंग | काशी मैं हम प्रगट भये हैं रामानंद चेताये । कबीर शब्दावछी, द्वितीय भाग, प्रप्ठ ६१ काशी में कीर्ति सुन भाई, कबीर मोहि कथा बुझाई। शुरु रामानंद चरण कम पर धोषिन ६ दीनी वार ॥ कबीर-कसीटी; प्रप्ठ कबीर साहब के ये चचन ही पर्याप्त हैं, जो यह सिद्ध व्करते हूँ कि वे स्वामी रामानंद के शिप्य थे। तथापि मैं छुछ नबाहरी प्रमाण भी दूँगा | धघम्मंदास जी कबीर साहय के प्रधान शिप्य थे। ये कबीर पंथ की एक शाखा के आचाय्यें भी हैं। वे कहते हैं-- ४ घोषिन अर्थोद माया ।




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