स्त्रीसुबोध भाग - 4 | Starisubodh Bhag - 4
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
32 MB
कुल पष्ठ :
392
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about हठीप्रसाद वकील - Hathiprasad Vakil
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| तो ढ
. ' - खीसुबोष । ९१७) .
_ कररहीहें' हाय: यह अशिक्षित पनकी दशा देखते इये भी; और
देखना कया झुगुतते हुये भी पुरुषोंने खरीशिक्षाका प्रचार नहीं किया।
_ (&) यह बात भी पुरुषों के विचार करने योग्यह्े कि ख़ियां पुरु-
पॉकी अद्धांगी बनाई गई हैं; फिर मैं पूछतीहूं कि आप शिक्षित और
उनको अशिक्षित रखना,यह ऐसा नहीं हुवा, कि सुखके एक दिशा
चंदन और दूसरी ओर कारिख छपेटना; वा एक आंख फटी और
दूसरी आंखमें अजन ढगाना ॥ < ॥
( ६ ) लिखाहै “हित अनहित पशु पश्चिइ जाना में आश्चर्यमें
हूं; कि पुरुषोंने अपने हित अनहितका विचार सली प्रकार नहीं
किया, यह नहीं जाना; कि इनका सुधार; इनका शिक्षित व्यवहार
. हमींको सुख देगा; इनका सुबोल सुचाल हमाराही मन प्रसच्
. करेगा, इनकी प्रीति रीति हमीको आनंद देगी और इनके अच्छे
पनेके यश सुननेसे हमींको ऐसा हमे होगा; कि फूले न समायेँगे, .
हा!क्यों ऐसा विचारके घुरुषोंने खीशिक्षाका अवध नहीं कियाद॥
(७ ) ख्ियां पुरुपोंको जन्मसंघाती मीत मिलती हैं मीतका
घम है कि परस्पर एक दूसरेको सुख और सिख देंवे; खियाँ तो
इतनाभी करतीहैं कि भोजन बना आपको खिला देती हैं, जिस
योजनसे यह शरीर रश्ित है; आपके झून्यस्थानकी संगी होकर
आपके शरीरकों सुख और मनके तापको मिटा देतीहें, पुरुप करें
. कौन मिताई उनके साथ करते हैं, ! यदि कहें “हम भोजन और
पसन उन्हें देतेहें” तो में कहतीहूँ कि तुम्हारा कवल वहानारी माजे
गास्तव सब कोई अपना पारव्थ भोग करताहे; आपकी मिताई
«तो चहथी कि उनको विद्यापदाते; उनकी घुद्धिको बढ़ाते जिससे
इनका वो चालू झुषरकर और नासाप्रकारके गुण ढंगसे लक्षित
: कर आपको छुख देतीं; और आप जगतमें वशपाती ॥ ७ ॥
User Reviews
No Reviews | Add Yours...