स्त्रीसुबोध भाग - 4 | Starisubodh Bhag - 4

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Starisubodh Bhag - 4   by हठीप्रसाद वकील - Hathiprasad Vakil

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| तो ढ . ' - खीसुबोष । ९१७) . _ कररहीहें' हाय: यह अशिक्षित पनकी दशा देखते इये भी; और देखना कया झुगुतते हुये भी पुरुषोंने खरीशिक्षाका प्रचार नहीं किया। _ (&) यह बात भी पुरुषों के विचार करने योग्यह्े कि ख़ियां पुरु- पॉकी अद्धांगी बनाई गई हैं; फिर मैं पूछतीहूं कि आप शिक्षित और उनको अशिक्षित रखना,यह ऐसा नहीं हुवा, कि सुखके एक दिशा चंदन और दूसरी ओर कारिख छपेटना; वा एक आंख फटी और दूसरी आंखमें अजन ढगाना ॥ < ॥ ( ६ ) लिखाहै “हित अनहित पशु पश्चिइ जाना में आश्चर्यमें हूं; कि पुरुषोंने अपने हित अनहितका विचार सली प्रकार नहीं किया, यह नहीं जाना; कि इनका सुधार; इनका शिक्षित व्यवहार . हमींको सुख देगा; इनका सुबोल सुचाल हमाराही मन प्रसच् . करेगा, इनकी प्रीति रीति हमीको आनंद देगी और इनके अच्छे पनेके यश सुननेसे हमींको ऐसा हमे होगा; कि फूले न समायेँगे, . हा!क्यों ऐसा विचारके घुरुषोंने खीशिक्षाका अवध नहीं कियाद॥ (७ ) ख्ियां पुरुपोंको जन्मसंघाती मीत मिलती हैं मीतका घम है कि परस्पर एक दूसरेको सुख और सिख देंवे; खियाँ तो इतनाभी करतीहैं कि भोजन बना आपको खिला देती हैं, जिस योजनसे यह शरीर रश्ित है; आपके झून्यस्थानकी संगी होकर आपके शरीरकों सुख और मनके तापको मिटा देतीहें, पुरुप करें . कौन मिताई उनके साथ करते हैं, ! यदि कहें “हम भोजन और पसन उन्हें देतेहें” तो में कहतीहूँ कि तुम्हारा कवल वहानारी माजे गास्तव सब कोई अपना पारव्थ भोग करताहे; आपकी मिताई «तो चहथी कि उनको विद्यापदाते; उनकी घुद्धिको बढ़ाते जिससे इनका वो चालू झुषरकर और नासाप्रकारके गुण ढंगसे लक्षित : कर आपको छुख देतीं; और आप जगतमें वशपाती ॥ ७ ॥




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