हिन्दी श्रीभाष्य भाग - 2 | Hindi Shribhashya Bhag - 2

Hindi Shribhashya Bhag - 2  by राम नारायण आचार्य - Ram Narayan Acharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ कष | का दर्शन होता है तब विकारों का बिदव भेद दर्शन) मिट जाता है । है और केवल अंधी ( ४ 00165पं25105€ ) अवक्षिष्ट रह जाता है । पि८्छट हेगेल स्पीनोजा के ईर्वर की आलोचना करते हुए कहते हैं- 5 का 0285. #0501घप6 15 8... 0115 ऐ6ए (0 जाेजंटा। 2] छि0ाछड 000६. 0िपां कि ऋाापफेटी। प्00८ ८४118, भर्थात्‌ स्पीनोजा का ईइवर वह सिंह की मांद है जिसमें सारी चीजें तिरोहत हो जाती हैं और उससे कोई भी चीज यथार्थ रूप से निकलती नहीं नजर आती । अद्ती विद्वानों का कहना है कि प्रपत्र बवैविध्य श्रप्रामाणिक एवं मिथ्या है । जहां पर प्रत्यक्ष से विरोध होता है वहाँ पर शास्त्रों की प्रामाणिकता स्वीकार की जाती है । शास्त्रों में भी सगुणों बाक्यों की अपेक्षा निगुण वाक्यों की प्रामाणिकता अपच्छेद न्याय से सिद्ध होती है । वे ज्ञान मात्र को ही आत्मा एवं परमात्मा मानते हैं । ज्ञान,सत्ता अनुभूति, संवित्‌ उनके मत में ये सभी समानाथंक शब्द हैं । थे संवित्‌ को नित्य एक निधंमंक एवं स्वयं प्रकाश मानते हैं । भीमाँसक विद्वान ज्ञान को अनुसेय मानते है । उनका कहना है कि जब हम किसी पदाथं का साक्षात्कार करते हैतो उस वस्तु में एक ्रकाशता या प्राकट्य नामक धर्म उत्पन्न हो जाता है, जिसको देखकर हम अपने ज्ञान का भसुसान करते है, मीमांसकों के इस कथन का खण्डन करते हुए अट्ठती विद्वान कहते हैं कि ज्ञान को स्वयं प्रकाश इस लिये मानना चाहिये कि बहु अपने सम्बन्ध मात्र से वस्त्वस्तर में




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