आगमानुसार मुहपतिनिर्णय और जाहिर घोषणा १,२,३ का उत्तर | Agamanusar Muhapatinirnay Aur Jahir Ghoshana 1,2,3 Ka Uttar

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Agamanusar Muhapatinirnay Aur Jahir Ghoshana 1,2,3 Ka Uttar by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ५ भ्गंबोने की छाज्ञा के विरुद्ध जितनी सी धर्म किया की जायेँगी संघ निष्फल हैं । पर क्या दण्डीली “पर उपदेश कुशल वहुतेरे” कीं तरह, शाप दूसरों को उपदेश देना हो जानते हैं या 'पनी 'ओात्मा पर भों लक लगाते हैं ? यह तो चद्दी वात हुई कि जैसे चोर किसी का घन चुसा- कर 'झाम चाज़ार से पोलिस के सामने दौडता हुआ ऐसा कहते निकले कि पकड़ना चोर जारहा है. तो क्या वह पोलिस के 'मांखो में धूल फैंक- कर जनता को धोखा देकर बरी हों सकेगा ? पाठक स्वयं सोचे । दागें चलकर दण्डीजी ने उसी प्रप्ठ मे जमालीजो का उदाहरण दिया सो न्याय श्मौर उदाहरणों की उंभंय पक्ष मे कोई त्रुटि नहीं । चाहे जो उदाहरण दे सक्ते हैं और लिख सक्ते हैं। जसाली जैसे कौन हैं ? १५ ५ ६. हीं -._ यह अपने स्वय दिल से पूछकर निणुय करले, कहीं ऐसा न-हों कि उनसे भी बढकर पश्चात्ताप का मौका 'ात्रे । भगवानें की 'आाज्ञा विरुद्ध हठाप्रह वश कितनी भी उच्च क्रिया की जाय वह सब न्ण्फल है, मोच्त प्रदायक नही । घ्ागें चलकर दण्डी जी प्रप्ट तीसरे पर यों लिखते हैं किंः-- 'पकोई सी प्राणी शास्त्र का एकपद, ए.+ अक्षर काना; मात्रा; एक विन्दु की भी उत्थापना करें या 'झथं उलटा करें वा पहिले का पाठ निकाल कर नया दाखिल करके सूत्र को और थे को उलठ पुलठ कर पेवें तो वह ब्पने सम्यक्त्वका 'और चारित्र का नाश करके सिधथ्या ृष्ि अनन्त ससारी होता है. ।'” न दराडीजी ने यह वहुत्त हीं ठीक लिखा इसका हम हृदय से स्वागत करते हैं. किन्तु ढश्डी जी ऐसा लिख ही जानते हैं या तदजुसार चलें थी हैं । शास्त्र के यक्षर काना, मात्रा, विन्दु की हो बात ही 'अझलग रही पर पद के पद श्राप सू्रों में से निकाल रहें दो इसकी भी कुछ खबर है ? दिये ! इन्दी दरुडीं छोगो के नुयायियों द्वारा प्रकाशित व्माचार




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