आरती और अंगारे | Aarati Aur Angaare

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(२० ) है, इन्हे श्रॉख से, मौन रहकर मत पढ़िए, इनको स्वर दीजिए, गाइए-- कुछ गीत गेय नही है, उन्हें सस्वर पढ़िए, भावानुरूप स्वर से । किसीसे गवाकर या पढ़ाकर सुनिए । यानी छापे हुए शब्दों की, जिसे श्रंग्रेजी में कहेंगे, 'माउदिग' की जानी चाहिए, उन्हें मुख से “मखर' किया जाना चाहिए । सब गीतों को एक सिरे से दूसरे सिरे तक न पढ जाइए । यह उपन्यास नही है । मे तो कोई श्रच्छा गीत सुन लेता हूँ तो बहुत देर तक दूसरा नहीं सन सकता । कोई गीत झापको विशेष प्रिय लगे तो उसे फिर- फिर पढ़िए । भ्रच्छा गीत दूसरी-तीसरी बार पढ़ने पर अधिक अच्छा लगना चाहिए । रत मे एक भ्रागाही । इस-उस कोने से श्रापको लोगो के ऐसे भी स्वर सुनाई देगे कि श्रब गीतों का यूग बीत गया है । श्राप अचरज मत कौजिएगा यदि ये लोग कल कहते सुने जॉय कि श्रब हँसने-रोने का, प्रेम करने का, सघषंरत होने का युग बीत गया है । झ्राज जो ऐसी बाते कह रहे हू उन्ही के बाप-चाचो ने जब 'मवुशाला' निकली थी तो कहा था, यह मस्ती का राग झ्रलापने का युग नही है, 'निशा निमंत्रण” निकला तो कहा था, यह रोदन-क्रंदन का युग नही है; 'सतरगिंनी' निकली तो कहा था, यह प्रेम के तराने उठाने का युग नही है; आर उनके बेटो-भतीजो ने 'प्रणय पत्रिका निकली तो कहा; यह तो बीते युग की बाते है । मेरे पाठकों ने इन तथा श्रन्य संग्रहो मे जो सह एवं सम श्रनूभूति पाई है उसने उनके इन फतवों को गलत हो साबित किया है । 'प्रणय पत्रिका का प्रथम सस्करण समाप्त हो गया है । शीघ्र ही नया संस्करण छपेगा, भ्रौर आप उसके श्र “श्रारती श्र भ्रगारे' के गीतों को मेरी एक ही कल्पना के ग्रतर्गंत मानकर उनका रस लीजिए । श्रागे के गीत में मेरे श्रौर तुम्हारे बीच' शीर्पक से लिखना चाहुँगा जो श्रापकों भविष्य में पत्र -पत्रिकाश्रों मे मिलेंगे । विदेश मचालय, नई दिल्‍ली । बच्चन १८-१२-१६४५७




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