आरती और अंगारे | Aarati Aur Angaare
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
236
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(२० )
है, इन्हे श्रॉख से, मौन रहकर मत पढ़िए, इनको स्वर दीजिए, गाइए--
कुछ गीत गेय नही है, उन्हें सस्वर पढ़िए, भावानुरूप स्वर से । किसीसे
गवाकर या पढ़ाकर सुनिए । यानी छापे हुए शब्दों की, जिसे श्रंग्रेजी में
कहेंगे, 'माउदिग' की जानी चाहिए, उन्हें मुख से “मखर' किया जाना
चाहिए । सब गीतों को एक सिरे से दूसरे सिरे तक न पढ जाइए । यह
उपन्यास नही है । मे तो कोई श्रच्छा गीत सुन लेता हूँ तो बहुत देर तक
दूसरा नहीं सन सकता । कोई गीत झापको विशेष प्रिय लगे तो उसे फिर-
फिर पढ़िए । भ्रच्छा गीत दूसरी-तीसरी बार पढ़ने पर अधिक अच्छा
लगना चाहिए ।
रत मे एक भ्रागाही । इस-उस कोने से श्रापको लोगो के ऐसे भी
स्वर सुनाई देगे कि श्रब गीतों का यूग बीत गया है । श्राप अचरज मत
कौजिएगा यदि ये लोग कल कहते सुने जॉय कि श्रब हँसने-रोने का, प्रेम
करने का, सघषंरत होने का युग बीत गया है । झ्राज जो ऐसी बाते कह
रहे हू उन्ही के बाप-चाचो ने जब 'मवुशाला' निकली थी तो कहा था, यह
मस्ती का राग झ्रलापने का युग नही है, 'निशा निमंत्रण” निकला तो
कहा था, यह रोदन-क्रंदन का युग नही है; 'सतरगिंनी' निकली तो कहा
था, यह प्रेम के तराने उठाने का युग नही है; आर उनके बेटो-भतीजो
ने 'प्रणय पत्रिका निकली तो कहा; यह तो बीते युग की बाते है । मेरे
पाठकों ने इन तथा श्रन्य संग्रहो मे जो सह एवं सम श्रनूभूति पाई है उसने
उनके इन फतवों को गलत हो साबित किया है ।
'प्रणय पत्रिका का प्रथम सस्करण समाप्त हो गया है । शीघ्र ही नया
संस्करण छपेगा, भ्रौर आप उसके श्र “श्रारती श्र भ्रगारे' के गीतों को
मेरी एक ही कल्पना के ग्रतर्गंत मानकर उनका रस लीजिए । श्रागे के
गीत में मेरे श्रौर तुम्हारे बीच' शीर्पक से लिखना चाहुँगा जो श्रापकों
भविष्य में पत्र -पत्रिकाश्रों मे मिलेंगे ।
विदेश मचालय,
नई दिल्ली । बच्चन
१८-१२-१६४५७
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