नियमावली | niyamawaali
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
460
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषय
सागारसंयमचरणका कथन । कर रभ ड
पंच अणुब्रतका स्वरूप । ... पक भर कि
तीन गुण ब्रतोंका स्वरूप ।
विक्षात्रतके चार भेद । ...... ...... ...... ...
यतिपर्मप्रतिपादनकी प्रतिज्ञा । ...... ८... ..,
यतिषर्मकी सामिप्री। ....... ...... ....... ...
पंचेन्द्रियसंघरणका स्वरुप । भा. दि
पांचब्रतोंका खहप। ....... ...... ....... ..
पंचन्नतोंको महात्रत संज्ञा किस कारणसे है। ....... ...
अहिंसात्रतकी पांच भावना । कर अर:
सत्यब्रतकी ५ भावना । ....... ,...... «०... ०८,
अचौयत्रतकी भावना । ...... ...... «८... ,..
ब्रह्मचयेकी भावना । हे. «सा
अपरिग्रह-मदाब्रतकी ५ भावला । ८... ...... ८.
संयमशुद्धिकी कारण पंच समिति । ....... ««..... «««
ज्ञानका लक्षण तथा आत्माही ज्ञान स्वरुप है । «««
मोक्षमागंत्वरूप श्रेष्ठ ज्ञानीका लक्षण
परमश्रद्धापूरवक-रत्नन्रयका ज्ञाताही मोक्षका भागी है ।
निश्चय चारित्ररुप ज्ञानके धारक सिद्ध होते हैं।
इअनिष्टके साधक शुणदोषका ह्वान श्रेष्ठ ज्ञानसे्दी होता है सम्यग््ञान
सहित चारित्रका घारक शीघ्रही अनुपम घुखको प्राप्त होता है ।
संक्षेपतासे चारित्रका कथन... «८ कि
चारित्र पाहुडकी भावनाका फल तथा भावनाका उपदेश ।
घपाइुड
आचार्यकी स्तुति और भंथ करनेकी प्रतिज्ञा । .८«»
आयतन भादि ११ स्थलोंके नाम । «०... ०००... «««
आयतनत्रयका ढक्षण । ....... »««.... ००००... ०००
रीकाकारकृत आयतनका अर्थ तथा इनसे विपरीत अश्यमत-
स्वीकृतका निषेध । ...... «»«».... ++०... ००»
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