सती -चरित्र-चन्द्रिका | sati - charitra -chandrika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
284
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सती पाती | ट्
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दिनोतक तपस्या की है कि, इसके रोपे हुए पेड़ शव फल देने लगे।
पर न तो श्ाज तक इसकी मनस्कामना पूरी हुई, .न इसका कोई
लक्षण ही दिखाई देता है । न मालूम देवादिदेव कब मेरी सखी पर
दया करेंगे! हम सखियोंसे तो धब वेचारीका मुंद भी नहीं
देखा जाता !' , .
जटाजूदधघारीने यह सारा हाल खुग, प्रार्वतीकी शोर मुंह फेर
कर पूछा,--“क्या यह सप सच है या कोरी दिल्लगी है १”
पाचेती श्रच तक स्फटिककी श्रन्तमांला जप रही थीं । श्रवके
उन्होंने मालाकों श्रागे रख, वात करनेकी चेष्रा की । पर मुंहसे
घात ही नहीं निफलती ।. बड़े यल से उनके मुँहसे दो-चार बातें
निकल सकी | झवतक हमलोग श्ररोंके ही मुंहसे छुनते श्राते थे
कि, पाती महादेवके प्रेमी श्राकांकतिणी हैं; मथवा उनके श्राचार
व्यवहार देखकर इस चातका झनुमान .करते थे। श्रव हमलोग
उन्हींके मुँहसे उनके दिलकी चातें सुन सकेंगे ।
पर चातें श्रधिक नहीं--गिनी-चुनी दो दो चातें हैं । वे बातें
कौनसी थीं. यदद जाननेके लिये शायद श्रापलोगोको-भी घड़ा कौतू-
इल हो रहा होगा । अच्छा, तो खुनिये । पाचंतीने कहा,--“श्रापने
जो कुछ उुना है, घह सच ठीफ्र है । मेरो श्राशा चड़ी लम्ची चौड़ी
है। इसीसे मैं इतना तप कर रही हूं; फर्योकि- “प्रदोरधानामग
तिने विद्यते ।
पाच॑तीने झपने प्रेमका जैसा प्रकाश किया, क्या चैसा श्राजतक
किसीने भी किया था,? इस प्रेमप्रकाशमे न.तो चलता है, न
इस्द्रिय-विदोय है। और यह वात भी तो इस दुनियाँकी सौ
नहीं है। यद स्थिर, घीर, शरटल श्र श्रचल प्रेम है। “मैं कुछ '
नहीं हैं, मेरी शाकांक्षा बोनेके चाँद छूनेके समान, बहुत बड़ी है;
लेफिन ब्रब मेरी और कोई गति नहीं है, इसलिये तपस्या कर. रही
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