सती -चरित्र-चन्द्रिका | sati - charitra -chandrika

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sati - charitra -chandrika  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सती पाती | ट् कर हपरपरच लय एप रथ तप रकरद तसहर्रप रस ि ससकतिलिलतजतपतपनपरयरयललजपटपततरपरपरवरपरतललतपतपरदपतदलिल पर पर मदाल दिनोतक तपस्या की है कि, इसके रोपे हुए पेड़ शव फल देने लगे। पर न तो श्ाज तक इसकी मनस्कामना पूरी हुई, .न इसका कोई लक्षण ही दिखाई देता है । न मालूम देवादिदेव कब मेरी सखी पर दया करेंगे! हम सखियोंसे तो धब वेचारीका मुंद भी नहीं देखा जाता !' , . जटाजूदधघारीने यह सारा हाल खुग, प्रार्वतीकी शोर मुंह फेर कर पूछा,--“क्या यह सप सच है या कोरी दिल्‍लगी है १” पाचेती श्रच तक स्फटिककी श्रन्तमांला जप रही थीं । श्रवके उन्होंने मालाकों श्रागे रख, वात करनेकी चेष्रा की । पर मुंहसे घात ही नहीं निफलती ।. बड़े यल से उनके मुँहसे दो-चार बातें निकल सकी | झवतक हमलोग श्ररोंके ही मुंहसे छुनते श्राते थे कि, पाती महादेवके प्रेमी श्राकांकतिणी हैं; मथवा उनके श्राचार व्यवहार देखकर इस चातका झनुमान .करते थे। श्रव हमलोग उन्हींके मुँहसे उनके दिलकी चातें सुन सकेंगे । पर चातें श्रधिक नहीं--गिनी-चुनी दो दो चातें हैं । वे बातें कौनसी थीं. यदद जाननेके लिये शायद श्रापलोगोको-भी घड़ा कौतू- इल हो रहा होगा । अच्छा, तो खुनिये । पाचंतीने कहा,--“श्रापने जो कुछ उुना है, घह सच ठीफ्र है । मेरो श्राशा चड़ी लम्ची चौड़ी है। इसीसे मैं इतना तप कर रही हूं; फर्योकि- “प्रदोरधानामग तिने विद्यते । पाच॑तीने झपने प्रेमका जैसा प्रकाश किया, क्या चैसा श्राजतक किसीने भी किया था,? इस प्रेमप्रकाशमे न.तो चलता है, न इस्द्रिय-विदोय है। और यह वात भी तो इस दुनियाँकी सौ नहीं है। यद स्थिर, घीर, शरटल श्र श्रचल प्रेम है। “मैं कुछ ' नहीं हैं, मेरी शाकांक्षा बोनेके चाँद छूनेके समान, बहुत बड़ी है; लेफिन ब्रब मेरी और कोई गति नहीं है, इसलिये तपस्या कर. रही




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