भूगोल - शिक्षण | Bhugol - Shikshan

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Bhugol - Shikshan by हरनारायण सिंह - Haranarayan Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नकल कनकककैननेकेन्क कक कलिककिकेकिनज्|लकिनकु नल लर्फेकिलडसल्िनयज>लननफुनककालजकिरिनायकल्लकयकवानिल्ताकर्कलिलकर्डम ककया ायकाजकनकनकरिककनकककलकिककजननजलनकनननकन नी भ्रनुमान लगाते थे । यह भरुगोल का प्रारम्भिक काल था, इसलिये शिक्षणः पद्धति का बहुत कम विकास हुश्रा । मध्य काल--भौगोलिक तथ्यों का मेल ईसाई-धर्म के सिद्धान्तों से न होने के काररा ईसाई-ध्मं ने भूगोल का बहिष्कार किया श्रौर भूगोल के श्रध्ययन तथा भौगोलिक-ज्ञान विकास में बाधा डाली । प्रायः: डेढ़ हजार वर्षों तक भूगोल का श्रथ्ययन दिधिल रहा। ज्ञान के थ्रौर क्षेत्रों में भी प्रगति नहीं हुई, तथा इस समय को “श्रन्धकार-युग' कहना श्रनुपयुक्त न होगा । सूर्य॑ को केन्द्र तथा पृथ्वी को गोल एवं गति-दील मानने के कारण गेलीलियों एवं कोपर- निकस प्रमुख व्यक्तियों को ईसाई धर्मानुयाइयों के हाथों कठोर यातनायें सहनी पड़ीं; धामिक युद्ध हुये, संस्कृति तथा नगरों का पतन हुभ्रा श्रौर चारों श्रोर योरोप में श्रशान्ति रही । किसी भी विद्वान ने यदि भौगोलिक-सिद्धान्तों तथा कारणों का उल्लेख किया तो उसे नास्तिक माना गया । वर्षा, तूफान तथा ऋतुश्रों का होना सभी ईशइ्वरीय-तत्व माने गये श्रौर उनके पीछे निहित भौगो- लिक कारणों को श्रपर्याप्त मानकर बहिष्कार किया गया । ईदवर में श्रघिका- घिंक श्रास्था होने से वेज्ञानिक-दष्टिकोण का लोप होगया श्रौर भ्रन्ध विदवास में वृद्धि हुई । मुस्लिम-काल (€ वीं शताब्दी) में भूगोल की श्रच्छी उन्नति हुई । श्ररब भूगोल-वेत्ताश्रों ने नक्षत्र तथा ज्योतिष विद्या का विकास किया श्रौर मरुस्थल में माग॑ ज्ञात करने के लिये इस विद्या से सहायता ली । 'मान-चित्र बनाने की कला' का विकास भी इस काल में खूब हुभ्रा । प्रसिद्ध भुगोल-वेत्ता “इब्न खादून' ने दो प्रकार के भौगोलिक वातावरणों का प्रभाव मानव-जीवन पर देखा । पहला मरुद्यानीय श्रनुकूल भौगोलिक वातावरण जहाँ के निवासी खेती, पद्ु पालन करते तथा स्थायी जीवन व्यतीत करते थे । दूसरा मरुस्थलीय प्रति- कूल भौगोलिक वातावरण जहाँ के निवासी जल के श्रभाव के कारण कठिन तथा कष्ट पूर्ण खाना-बदोश जीवन-यापन करते थे । दोनों ही. समुदायों में समय-समय पर सांस्कृतिक सम्पकं होता रहता था श्रौर भौगोलिक ज्ञान की वृद्धि होती रहती थी । इस समय तक भूगोल का पाठ्य क्रम में कोई स्वतंत्र स्थान नहीं था श्रौर '्रब भी इसे लोग “पृथ्वी का वर्णन श्रादि नामों से सम्बोधित करते थे । १४५ वीं शताब्दी में शिक्षा का पुनुरुत्थान हुप्रा । व्यापार के प्रसार से नये नये देशों का पता लगा श्रौर नये मार्गों की खोज की गई । अनेक यात्रायें 1, (ब0०टुप्2 एफ भ




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