पुण्य की जड़ हरी | Punya Ki Jad Hari
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पी
सत्ती १६
लगी तर उसने साँप का रास्ता रोक लिया । साँप निडर होकर
जल के प्रवाह में घुस तो गया, पर वहाँ उसकी ऐसी दुर्गति हुई
कि हार मानकर उसे लौटना पड़ा । जब वह गुरु के पास पहुँचा
तो गरु ने गस्ते में उसका भी काम तमाम कर दिया । झ्रबकी
वार उसने निश्चय किया कि वह खुद ही जायगा । उसने सूत्त
से भी वारीक सांप का रूप घारण किया और किसी प्रकार सेठ
के लड़के के कमरे में घुस गया । लड़का ग्रौर बहू गहरी नींद में
सोये हुए थे । लड़की की चोटी खाट से नीचे लटक रही थी ।
साँप उसीके सहारे चारपाई पर चढ़ गया । पर लड़की के सत् से
कालरूप सर्प को भी ज्ञान उपजा श्र वह प्रतीक्षा करने लगा कि
लड़का कुसूर करे तव वहू काटे । वह लड़के के शरोर पर चक्क
काटने लगा । जेसे ही चह रेंगता हुम्रा लड़के के पर पर पहुँचा
कि उसने पर से उसे भटक दिया । बस सर्प को बहाना मिल गया
श्रौर उसने लड़के को काट लिया । सुत-सा पतला साँप अब खुब
बड़ा वन गया था । उसे देखकर लड़का समभझ गया कि मेरी
मौत अब निकट हो है। चहू अपनी वहू से वोला, “तू कसी
गहरी नींद में सो रही है । उठकर देख कि मेरे सारे शरीर
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में विप फलता जा रहा है। जल्दी से कोई उपाय कर नहीं
तो पछतायेगी ।''
गुरु के जादू से लड़की की नींद नहीं टूटी श्रौर लड़का
मर गया ।
इसके वाद लड़की को श्राँल खुली तो देखा, उसका पति
मरा पड़ा है। चारपाई के नीचे साँप को देखकर सारी वात
उसका समभ में श्रागई । उसने कमरे का दरवाजा खोला
और सेठ से कहकर गंगानदी में नाव डलवाई । उसने अपने
पति के दाव को नाव पर रक्खा । साय में एक काली घिलली
ली श्रौर एक दूध से भरा मटका । उस नावमें वैठ कर वह इन्द्र-
पुरी को चल दी । उसी समय इन्द्रासन डोलने उठा, बादल
गरजने लगे श्रौर विजली कड़कने लगी । नाव खेते-खेते लड़की
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