गुरुकल पत्रिका वर्ष 5 नवम्बर 1952 | Gurukul Patrikaa Varshh-5, Novembar-1952

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Gurukul Patrikaa Varshh-5, Novembar-1952 by रामेश बेदी आयुर्वेदालंकर- Ramesh Bedi Aayurvedalankarसुखदेव दर्शन वाचस्पति-Sukhdev Darshan Vaachspti

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सुखदेव दर्शन वाचस्पति-Sukhdev Darshan Vaachspti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२००६] श्ादि झनेक देवी बपत्तिया उसे समाप्त करना च हतो हु इघर धूते वद्चक छली लोग पैँलाने को चेषटा कर रहे हैं. उधर श्रत्याचारगो तलवार ले कर सामने खडे हैं। पग पग पर विध्नसूपी चड्ाने है ब था रूपी खाइया हैं । इन सब को मनुष्य को पार करना दे। इसलिए बेद ने कहा श्रश्मनवती रायते सरब्ध्य उचित प्रतरता सखाय' हे मनुष्यों जेपते नदी का प्रचाइ तट को गिराता हुमा बाघों को तोड़ता हुश्रा चट्ट नों को नाघता हुम्रा श्रागे बढ़ता जात! दे वेसे दी मनुष्य का भा सब विष्नों को परास्त करते हुए छा।गे है श्रगे बढ़ते नाना है | परव्तु इस के लिए. मन में प्रबल बार भावना का श्रावश्यकता है. उस वार जे वनस्पति थी में रह (प्रस् ११० का शेष ) से पहचाना जा सकता है. मिलावट क॑ रूप से उप» योग करने की दृष्टि से पत्र इरित वाले वनस्पति घ को यदि काई गरम कर के या घूप में रस कर नीरग करने का प्रयत्न करे तो उस में उसे सफ्लला नहीं मिल सकता क्योंकि ऐ४ करने से वद्द थी बिल्कुल नारग नहीं दोगा, उस का रंग बिकृत हो कर केवल कुछ बदल लावगा श्रौर पारजम्बु प्रकाश में या सूये की धूप में भी उस को गहरी श्ररुण दाप्ति स्पष्ट भऋलकने लगेगी पत्र हग्ति के श्ररणु में मेग- नेशयम होता हे जिस की सूचम रासायनिक परीक्षा की जा सकती है। क्‍्लोरोफ्लि वाले घी की यह सूदम राहायनिक परीक्षा ( माइक्रोकेमिकल टेस्ड ) की जाय. तो बहुत शघ्र मेंगनेशियम की उपस्थिति ज्ञात दो जाती है । शुद्ध घी में यदि क्लोरोफ्लि वाला वेद में मस्त श्रीर उनकी युद्धकला भावना को नागत करने के उद्द श्य से वेदों में स्थान- स्थान पर सूक़ों के सूक राक्षसों के सार के वन से भरे हैं. जहा हम इन से बाहा राच्सों के विध्वस का सन्देश लेना है वहा श्रान्तरिक राछषों के सहार की वीर मावनाश्रों को भी जाणत करना है । बाहर की भात श्रन्द्र भी निरन्तर देवासुर सप्राम डोता रहता है | इस लिए वेद का सन्देश है 1क जगत्‌ को श्रौर श्रपने अप को रान्स दान कर के देव तुल्य बनाओ | इष प्रकार वेद के युद्ध वणनों से इम भौतिक विनय तथा श्राध्या तमक विजय दोनो प्रकार की भाव नाओं को जायत कर सकते है । वनस्पति घी एक प्रतिशत मी मिलाया हुआ्रा हो तो इस 'सूचम रासायनिक परीक्षा से वह भी श्रासानी से पकड़ा का. सकता है ।. यद्यपि बान्तिक कोयले या फ्ल्ल की. मिहीं.. ( फल्लसत्रर्थ ). के साथ विधिपूचक क्रिया कर के, श्रन्य दूसरे रगों की तरह, पत्र इरिति को भी लगभग पूर्णतया नष्ठ किया जा सकता दे तथाप उस घा म जो कुछ भी थोका बहुत पत्र दारत रद जाता. दे. उस के कारण पारजम्बु प्रकाश मे या सूर्य की धूप में पिघले हुए वो की श्ररुण दोप्ति वाली परीद्ा उस में भली भाति हा सकती है। इश के श्रतिरिक्त इस प्रकार रज् को नष्ट करने की क्रिया बहुत कठिन एव सददसी होती है । इस कारण बडे पमाने पर इस प्रकार की फिचियों से पत्र इ।रत के रंग को नष्ट करने का साइस' कोई नहीं कर सकता [ करेंट साइन्स' से साभार) | -्झनुण शी सत्यनत गुप्त, वे७ श्र ०,; एम ए० ! ज श्र




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