श्रीआचारंगसूत्र हिंदी भाग १ | Shreeacharangsutra Hindi Volume - I

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : श्रीआचारंगसूत्र हिंदी भाग १  - Shreeacharangsutra Hindi Volume - I

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[. २५ 3 भर क्या कहा जा सकता है ? यह झ्रसहिष्णुता कैसे उत्पन्न हुई ? ् विपय खूब विद्याल है । यहां तो सुझके अंगुलीनिर्देश मा श्रसहिष्णुताका हीं करना है! थ पैतृक दाय भी सर्वेज्नत्वकी मान्यता जैनदर्शव के प्रत्येक तीर्यकर श्रहेतु, जिन, सर्वेज्ञ समभे जाते हैं। जेनोंको मान्यता है कि भूत, भविष्य आर वर्तमानके प्रत्येक भावकों . झंजलिगत जलके समान या हथेली पर रखे हुए श्रांवले भावभूलेंकी की तरह एक ही समयमें जानने श्रौर देखनेवले सवंज्ञ झाब्द पूजा. होते हैं । ज्ञातपुत्र महावीर भगवान ऐसे ही सर्वे्र हो गये हैं। इस मान्यताके संबंध हमें किसी प्रकारकी चर्चा न - करना ही झ्रभीष्ट है। इसमें गहरीसे गहरी र्मश्रद्धाकी जो रक्षा हैं; वह मानवसमाजकेलिए श्रत्यावश्यक है । परंतु प्रद्न यह होता है कि स्वज्ञके नामसे सर्वजके शब्दों पर भी जो सर्वेज्ञत्वका झारोप किया जाता है वह किस भ्पेक्षासे ? शब्द स्वयं नित्य है या श्रनित्य ? दाव्द स्वयं श्रयेक्षित है, पुदुगल है, तत्र भाव शरीर श्रावयकी नित्यता संभालकर रखनेमें परि- वर्तन होना शक्य है या नहीं ? >६ 2६ श्राजंदूस्वामी के श्रन्तिम निर्वाणके वाद मोक्षके द्वार बंद हो गए थे, ऐसा स्थानकसुत्रमें उल्लेख है। चाहे यह उल्लेख सहेतुक ही हो इसे नाना -+-+-'शास्र स्वयं ही यह कहते हैं कि स्वेज्ञ जितना जानते हैं उसका श्रनंतवां भाग वे कह सकते हैं, श्रौर जितना वे श्रीमुखसे कहते हैं उसका भ्रनंतवां भाग गणधर ग्रहण कर सकते हैं, और गणघर जितना ग्रहण करते हैं उसका श्रनंतवां भाग ही गूथ सकते हैं । दाव्दके परिव्तनका आधार भूत प्रमाण इससे श्रविक दूसरा श्र कया हो सकता है ?




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now