समग्र [खण्ड ४] | Samgra [Vol 4]

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Samgra [Vol 4] by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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समग्र/४/११ सुशीलता ए निरतिचार शब्द बड़े मार्क का शब्द है। ब्रत के पालने में यदि कोई गड़बड़ न हो तो आत्मा और मन पर एक ऐसी छाप पड़ती है खुद का तो निस्तार होता ही है, अन्य भी जो इस प्रत और ब्रती के सम्पर्क में आ जाते हैं वे भी तिर जाते हैं। शील से अभिप्राव स्वभाव से है। स्वभाव की उपलब्धि के लिए निरतिचार व्रत का पालन करना ही “शीलब्रतेष्वनतिचार'' कहलाता है। व्रत से अभिप्राय नियम, कानून अथवा अनुशासन से है। जिस जीवन मे अनुशासन का अभाव है वह जीवन निर्बल है। निरतिचार व्रत पालन से एक अद्भुत बल की प्राप्ति जीवन में होती है। निरतिचार का मतलब ही यह है कि जीवन अस्त-व्यस्त न हो, शान्त और सबल ह्ले। रावण के विषय में यह विख्यात है कि वह दुराचारी था किन्तु वह अपने जीवन मे एक प्रतिज्ञा मे आबद्ध भी था। उसका ब्रत था कि वह किसी नारी पर बलात्कार नहीं करेगा, उसकी इच्छा के विरुद्ध उसे नहीं भोगेगा और यही कारण था कि वह सीता को हरण तो कर लाया किन्तु उनका शील भग नहीं कर पाया! इसका कारण केवत्र उसका द्रत था, उसकी प्रतिज्ञा थी। यद्यपि यह संही है कि यदि वह सीताजी के साथ बलाक्कार का प्रयास भी करता तो भस्मसात हो जाता किन्तु उसी प्रतिज्ञा ने उसे ऐसा करने से रोक लिया। ये 'निरतिचार' शब्द बडे मार्क का शब्द है। व्रत के पाल्नन मे यदि कोई गडबड़ न हो तो आता और मन पर एक ऐसी गहरी छाप पड़ती है कि खुद का तो निस्तार होता ही है, अन्य भी जो इस व्रत और ब्रती के सम्पर्क में आ जाते है बिना प्रभावित हुवे रह नहीं सकते। जैसे कस्तूरी को अपनी सुगन्ध के लिए किसी तरह की प्रतिज्ञा नहीं करनी पड़ती, उसकी सुगन्ध तो स्वत्त चारो ओर व्याप्त हो जाती है। वैसी ही इस व्रत की महिमा है। 'अतिचार' और 'अनाचार' में भी बड़ा अन्तर है। 'अतिचार' दोष है जो लगाया नहीं जाता, प्रमादवश लग जाता है। किन्तु अनाचार तो सम्पूर्ण ग्रत को विनष्ट करने




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